कलम और क़लम में फर्क है
मायने में...सोचिए
क़लम अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। अज्ञानता से ज्ञान के गलियारों की यात्रा में
क़लम उजाले की किरण है जो सही राह चुनने में
मदद करती है।
क़लम बुद्धिजीवी है, क़लम की ताकत
ही है जो किसी भी समाज और देश
को सकारात्मक दिशा देकर
बेहतरीन भविष्य गढ़ने में सहायक बन सकती है।
“मसि कागद छूऔं नहीं, कलम गहौं नहि हाथ
चारों जुग कै महातम कबिरा मुखहिं जनाई बात”
कबीर जी का ये दोहा बड़ी गहरी बात बताता है |
इसका शाब्दिक अर्थ है कि :
मैंने कागज और स्याही छुआ नहीं और न ही कलम पकड़ी है |
मैं चारो युगों के महात्मय की बात मुहजबानी बताताहूँ|
इस दोहे की पहली पंक्ति से ये आभास होता है कि
वो “पढ़े लिखे नहीं हैं” अर्थात वो कहते हैं की वो निरक्षर हैं|
और यही मतलब हर जगह प्रचलित है |
......
कालजयी रचनाएँ
क़लम या कि तलवार.....रामधारी सिंह दिनकर
कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली
पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे
वेदना और कलम ....योगेश सुहागवती गोयल
जब सारे रास्ते बंद हो जायें, कोई राह नहीं सूझे
मन में दबी वेदना, कलम से, आंसू छलकाती है
कभी रिश्तों की मजबूरी,कभी उमर के बीच दूरी
अपनी जुबान बंद रखने को, मजबूर हो जाते है
अदब की मांग और कभी, तहज़ीब झुका देती है
कभी वक़्त गलत मान, खुद ही चुप रह जाते हैं
'कलम' ...ओम प्रकाश अत्रि
हर गरीब
बेबस जनता के
बहते हुए
आँसुओं को
पोछती कलम,
बेजुबान की
जुबान बनकर
उसके हकों को
दिलाती कलम।
माफ करना वीर मेरे !
हाँ, उसी पल से...तभी से...
रुह मेरी सुन्न है और
काँपते हैं हाथ मेरे !
शब्द मेरे रो पड़े और
रुक गई मेरी कलम भी !
वीर मेरे ! अश्रुधारा बह चली...
आदरणीय ऋतु आसूजा
लेखनी भाव सूचक ...
लेखनी का रंग
जब एहसासो के रूप में
भावनाओं के माध्यम से
काग़ज़ पर संवरता है
और जन-मानस के हृदय को
झकझोर कर मन पर अपनी छाप छोड़ता है ,
तब समझो एक लेखक की
लेखनी का रंग अमिट होता है
अमर होता है ।
आदरणीय श्वेता सिन्हा
मत लिखो प्रेम कविताएँ ....
अगर कहलाना है तुम्हें
अच्छा कवि
तो प्रेम और प्रकृति जैसे
हल्के विषयों पर
क़लम से नक्क़ाशी करना छोड़ो
मर्यादित रहो,
गंभीरता का लबादा ओढ़ो,
समाज की दुर्दशा पर लिखो,
गिरते सामाजिक मूल्यों पर लिखो,
आदरणीय सुबोध सिन्हा
ऋचाओं-सी ...
फिर बोलो
ना जरा ..
दरकार भला
पड़ेगी क्यों
कलम की सनम
प्रेम-कहानी लिखने में
ऋचाओं-सी
मुझे याद ज़ुबानी
तुम कर लेना
तराशुंगा मैं तुमको
अपने सोंचों की
कंदराओं में
फिर तलाशेंगे प्रेम ग्रंथ
मिलकर हमदोनों
उम्र-तूलिका से
क़ुदरत की उकेरी
एक-दूसरे के
बदन की लकीरों में
..........
इतनी ही रचनाए प्राप्त हुई
कल भाई रवीन्द्र जी आ रहे है
नए विषय के साथ
सादर
बेहतरीन चली कलम..
जवाब देंहटाएंसभी को साधुवाद..
सादर..
बेहतरीन प्रस्तुति, आनन्द आ गया। समस्त,रचनाकारों को शुभकामनाएँ । शुभ प्रभात ।
जवाब देंहटाएंआदरणीया आशा सक्सेना जी की बेबाक रचना, मन को छू गई
जवाब देंहटाएंकोशिशों की बैसाखी ले कर चलती है
पर वह प्रखरता अब कहाँ |
ह्रदय में जगह की कमी नहीं है
लिखने को अंतस में पैनी लेखनी चाहिए...
सत्य लिखा है उन्होंने इन पंक्तियों में । आज जब सतही रचनाओं को पढता हूँ तो वही पैनापन महसूस नहीं होता है।
साधुवाद उन्हे ।
सशक्त रचनाओं को इस मंच पर पिरोने हेतु इस मंच का साधुवाद ।
कलम का प्रहार हो,
जवाब देंहटाएंदो धारी तलवार हो,
मन मजबूत कर,
आवाज उठाइए।
आदरणीया अनुराधा जी की उपरोक्त पंक्तियाँ वाकई लाजवाब है। नमन है उन्हें ।
हार्दिक आभार आदरणीय
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को आज के अंक में शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
सुंदर अंक, बेहतरीन रचनाएं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाएँ। विशेषकर रोहितासभाई की रचना आधुनिक कलमकारों को आईना दिखाती हुई, मन को झकझोर गई और प्रश्न छोड़ गई कि हम क्यों लिख रहे हैं और क्या लिख रहे हैं....
जवाब देंहटाएंमेरी दोनों रचनाओं को हमकदम में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी।
बहुत ही सुंदर हमकदम का अंक ,कमल की कलम चली सब की ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं सादर नमन
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