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रविवार, 23 फ़रवरी 2020

1682...स्लम के आगे उठ गयी, अब ऊंची दीवार...


 सादर अभिवादन। 

आदमी पर आदमी के अत्याचार 
असुरक्षा का मन पर भारी भार,
आख़िर हासिल होता क्या उन्हें
क़ानूनी मार सामाजिक तिरस्कार।
-रवीन्द्र 
आज भाई कुलदीप जी के स्थान पर मैं हाज़िर हूँ 
सद्य प्रकाशित पसंदीदा रचनाओं के साथ। 
आइए पढ़ते हैं आज की चयनित रचनाएँ-


सदा ट्रम्प को होत है, पत्तन में सत्कार,
स्लम के आगे उठ गयी, अब ऊंची दीवार.

फ़ितरत..... डॉ. जेन्नी शबनम 

मेरी फ़ोटो

साथ सफर पर चलने के लिए   
एक दूसरे को राहत देनी होती है   
ज़रा-सा प्रेम, जरा-सा विश्वास चाहिए होता है   
और वह हमने खो दिया था   
जिंदगी को न जीने के लिए   
हमने खुद मजबूर किया था,   
सच है बीती बातें न भुलाई जा सकती हैं   
न सीने में दफ़न हो सकती हैं   


लगता रावण की बस्ती में
मुझे अचानक राम मिला है

खुशबू बांटो डूब प्यार में
तुझे सुमन जो नाम मिला है
 
 
मेरी फ़ोटो

वो के हवाले से उसकी सारी बात कह देते हैं महफिल में
ये तो शायरों की जुबान फिसलती है और क्या है
 
वो क्या है जिसका इस्तेमाल खाने में नहाने में लगाने में होता है
तन्हा इसका जवाब हल्दी है और क्या है


बचपन-के-कड़वे-घूँट-Poor-Children-in-India
आज इन बच्चों को सड़क पर इस तरह देखा तो मन में एक साथ हज़ारों सवाल फूट पड़े इतनी छोटी सी उम्र में ये बच्चें ये सब क्या कर रहे हैं ? ये सब काम अपनी मर्ज़ी से कर रहे हैं या फिर इनके घर वाले करवा रहें हैं ? क्यूँ इन मासूमों से इनका बचपन छीना जा रहा है ?  






आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे आगामी गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    बढ़िया प्रस्तुति...
    आभार आपका..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी प्रस्तुति। चुनिंदा और बेहतरीन लिंक्स। सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!बेहतरीन प्रस्तुति रविन्द्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार लिंक चयन शानदार प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार प्रस्तुति बहुत सुंदर!!
    अच्छी रचनाओं का चयन
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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