वेदना मूलतः संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक
अर्थ पीड़ा,दर्द,व्यथा इत्यादि है।
मनुष्य के मन की भावनाओं में दो भावों की प्रधानता है
सुख और दुख। दुख को नैसर्गिक रुप से बिना किसी कृत्रिमता और छल,कपट के बड़बोले आडंबरों से मुक्त,
मानसिक व्यथा की अनुभूति ही वेदना है।
अनुभूति जब तीव्र वेग से भावनाओं को उद्वेलित करती है तो संवेदनशील कवि हृदय की करुण शाब्दिक अभिव्यक्ति
रचना के रुप में व्यक्त होती है।
स्मृतिशेष सुभद्रा कुमारी चौहान
वेदना ....
दिन में प्रचंड रवि-किरणें
मुझको शीतल कर जातीं।
पर मधुर ज्योत्स्ना तेरी,
हे शशि! है मुझे जलाती॥
संध्या की सुमधुर बेला,
सब विहग नीड़ में आते।
मेरी आँखों के जीवन,
बरबस मुझसे छिन जाते॥
स्मृतिशेष महादेवी वर्मा
विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास;
अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात!
जीवन विरह का जलजात!
ना आए विरह की रैन ...रानी विशाल
कोयल कूहके बाग में, पपीहे ने मचाया शोर
ऋतु पर भी यौवन चड़ा, पर ना नाचे मन का मोर
लगे है चन्दन आग सा, पुरवाई चुभोए शूल
मैं जोगन बन राह तकू, पियुजी गए तुम मुझको भूल
चंद्रप्रभा से रात सजी, तारो ने जमाया डेरा
सिसक विरह में रात कटी, असुवन में हुआ सवेरा
....
.....
कारणों से दो नावों की सवारी के
आदती हो गये हैं और हमारे पास अध्यात्म,
साहित्य, संस्कृति एवं संस्कार का विपुल
भण्डार होकर भी ऐसा क्यों लगता है
कि अपना कुछ भी नहीं है !
आदरणीय भाई रवीन्द्र सिंह जी
असीम वेदना ...
असीम वेदना से
सहती है नादान इंसान के
स्वकेन्द्रित क्रिया-कलाप
हवा-पानी धूप-चाँदनी से
कहती है-
भेदभाव हमारी नीयत में नहीं
आदरणीय उर्मिला सिंह
वेदना के पल
आस का पक्षी फडफडाता,उम्मीदों की शाख पर
मन की डारियां झुला झूलाती पीले पीले पात पर
चट्टानों की दरारों से झांकता सहमा सा उजास है
वेदना की मुस्कान अँधेरों से मिली सौगात है!!
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा
लहर! नही इक जीवन!
टिसते, बहते ये घन,
हलचल है, श्मशान नहीं,
रुकना होता है, थम जाना होता है,
भावों से, वेदना को,
टकराना होता है,
तिल-तिल, जल-कर, जी जाना होता है!
जीवन, तब बन पाता है!
आदरणीय साधना वैद
वेदना की राह पर
वेदना की राह पर
बेचैन मैं हर पल घड़ी ,
तुम सदा थे साथ फिर
क्यों आज मैं एकल खड़ी !
थाम कर उँगली तुम्हारी
एक भोली आस पर ,
चल पड़ी सागर किनारे
एक अनबुझ प्यास धर !
आदरणीय कविता रावत
असहाय वेदना.....
किन्तु अब पुत्र-वियोग है भारी,
न सुहाग न पुत्र रहा अब
खुशियाँ मिट चुकी है मेरी सारी।'
'असहाय वेदना' थी यह उसकी
गोद हुई थी उसकी खाली,
वो दुखियारी पास खड़ी थी
दूर कहीं की रहने वाली।।
आदरणीय सुजाता प्रिय
विरह वेदना
वेदना से क्या कहूँ,
यह दिल बड़ा बेचैन है।
दिन नहीं कटता यहाँ,
कटता नहीं अब रैन है।
अहसास हो कुछ आस का,
तुम ऐसी कोई शाम दे दो
आदरणीय कुसुम कोठारी
राधा जी की विरह वेदना
विरह वेदना सही न जावे
कैसे हरी राधा समझावे
स्वयं भी तो समझ न पावे
उर " वेदना "से है अघावे।
आदरणीय अनुराधा चौहान
मेरी वेदना ..
तेरी यादों की हवा मुझे छूकर गुजरती है
मेरे जख्मों को कुरेद आँखें नम कर देती है
डूबती हूँ मैं अपने अतीत की गहराई में
तुझसे मिलने की चाहत बेचैन करती है
मेरे दर्द की इंतहा उफ़ ये तेरा इंतज़ार
बेकरार कर देती है आहट हर प्रहर
हवाओं के झोंके यादों को झिंझोड़ते
आँखों में उतरने लगती दर्द की लहर
आदरणीय मीना शर्मा
सृजन गीत
वेदना,पीड़ा,व्यथा, को
ईश का उपहार समझो,
तुम बनो शिव,आज परहित
इस हलाहल को पचा लो !
सृजन में संलग्न होकर.....
नीर को, अब क्षीर से,
करना विलग तुम सीख भी लो,
उर-उदधि को कर विलोड़ित,
नेह के मोती निकालो !
सृजन में संलग्न होकर.....
श्वेता
विरहिणी/वसंत
विरह की उष्मा
पिघलाती है बर्फ़
पलकों से बूँद-बूँद
टपकती है वेदना
भिंगाती है धरती की कोख
सोये बीज सींचे जाते हैं,
फूटती है प्रकृति के
अंग-प्रत्यंग से सुषमा,
अनहद राग-रागिनियाँ...,
....
वेदना एक गम्भीर विषय
इस विषय पर रचना लिखना
एवरेस्ट फतह के समान है
सभी को शुभकामनाएँ
कल आएँगे भाई कुलदीप जी
नए विषय के साथ
विदा दें ..
सादर..
वेदना से संदर्भित इस विशेष अंक में मेरे लेख को स्थान देने के लिए आपका हृदय से अत्यंत आभारी हूँ, यशोदा दी। मीना दी , कुसुम दी, पुरुषोत्तम जी सहित अन्य वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाएँ पटल को गौरवान्वित कर रही हैं, साथ ही उन महाकवियों का सृजन भी पढ़ने को मिला है, जिनका कृतित्व स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
जवाब देंहटाएंसत्य तो यही है कि वेदना में अद्भुत शक्ति होती है। यह हमें दृष्टि देती है। इसके कारण हमारा हृदय संवेदनशील हो उठता है । तभी तो यह कहते हैं न कि जो यातना में है, वह दृष्टा हो सकता है।
"जिन्हें वेदना न भाए, वो कवि कहाँ कहलाए, टूट-टूट बिखरे हिय, कलम खुद लिखता जाए।"
जवाब देंहटाएंशायद एक कवि की बेहतरीन सृजन वेदना के पल से ही निकलते हैं । तार -तार झंकृत होते हैं और गीत खुद बज उठते हैं ।
समस्त रचनाकारों व मंच से जुड़े सभी गुणीजनों को शुभकामनाएँ ।
आदरणीय शशि जी अर्थात व्याकुल पथिक जी की भावनाओं को यथोचित नमन। इस ब्लॉग जगत को समृद्ध बनाती आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे ।
शुभ प्रभात
आभार बड़े भैया , आपका स्नेहाशीष इसी तरह बना रहे।
हटाएंअवश्य ही। हम सब मिलकर ब्लॉग जगत में एक नई जान अवश्य ही फूंक सकते हैं ।
हटाएंकदाचित, ब्लॉग लेखकों को फेसबुक या अन्य माध्यमों का सहारा लेना पड़ता है और पाठकगण मी वहीँ अपनी टिपण्णी अंकित कर अपनी जवाबदेहियों से मुक्त हो जाते हैं ।
फलतः, ब्लॉग व ब्लॉगर की रचनाओं को उचित स्थान नही मिल पाता है। कभी-कभी ब्लॉग के कवियों को स्तरहीन तक कहा जाता है। ब्लॉग की समृद्धि हेतु एक सघन सामुहिक प्रयास की आवश्यकता है।
शेष ईश्वर की इच्छा।
वाहः
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स चयन
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
सभी को सुप्रभात और प्रणाम 🙏🙏 सुंदर अंक आदरणीय दीदी। वेदना सृजन की जननी है। किसी गीतकार ने लिखा --- हैं सबसे मधुर गीत जिन्हें हैं दर्द के सुर में गाते हैं ---! वेदना जनित साहित्य मानव जीवन की अनमोल थाती है। आज की रचनाएँ स्वयं अपनी कहानी आप कह रही हैं सभी रचनाकारों को नमन। 🙏🙏 शशि भाई और पुरुषोत्तम जी का सार्थक संवाद और विचार पटल की शोभा द्विगुणित कर रहे हैं। पुरुषोत्तम जी के विचार से सहमत हूँ, कि टिप्पणी फेसबुक की बजाय ब्लॉग पर करना चाहिए। क्योकि हमारा असली घर , वैचारिक सदन तो ब्लॉग है । भले बाहर ना लिखें अंदर जरूर लिखें । नये ब्लॉगर बंधुओं के ब्लॉग पर तो जरूर लिखें। इससे हम अंजाने पथिकों को उनकी मंजिल पाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। काफी दिनों से देखने में आ रहा है, जिनके ब्लॉग चल निकले हैं उन्होंने पाठकों की टिप्पणीयों का आभार व्यक्त करना ही बंद कर दिया है अथवा नये लोग भी कई बार , अपने ब्लॉग पर नये पाठक का यथोचित सम्मान नहीं करते हैं। जब आपके पास नई रचना लिखें का समय है ,दूसरी जगहों पर विचार विमर्श के लिए भी गुंजाइश है तो पाठकों के आभारके लिए क्यों नहीं?? और यदि समय नहीं तो मेरे
जवाब देंहटाएंब्लॉगर मित्रोंसे पूछना चाहूँगी, कि उनके ब्लॉग पर क्यों जाया जाए???? इसी चलन के चलते मैंने कई ब्लॉग से लिखने के मामले में दूरी बना ली है।
तुलसीदास जी ने लिखाहै ---
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह। तुलसी
तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
सो पाठकों का सम्मान बना रहना चाहिए। भले एक पंक्ति में सबको आभार लिखें पर अपने शिष्टाचार का परिचय तो दें।
आज के स्टार रचनाकारों के साथ आपको हार्दिक शुभकामनायें और बधाई। मुझे भी प्रसंगवश अपनी बात कहने का अवसर मिला जिसके लिए मंच का कोटि आभार 🙏🙏 सादर 🙏🙏
सखी रेणु
हटाएंआभार
सादर
यह मैं भी कहना चाहता था रेणु दी, परंतु ब्लॉग जगत का कनिष्ठ सदस्य होने के कारण संकोचवश कह नहीं पा रहा था।
हटाएं" आभार " - इस एक शब्द से रचनाकार हो अथवा टिप्पणी कर्ता उसे कितनी खुशी मिलती है, यह शब्दों से परे है।
कभी-कभी चर्चामंच पर अनु जी ,कामिनी जी अथवा आँचल जी जब मेरी टिप्पणी पर आभार लिखती हैं, तो ऐसा लगता है कि मेरी प्रतिक्रिया सार्थक हुई।
अब तो होली तक अखबार के कार्यों से कुछ अधिक व्यस्त रहूँँगा, क्यों कि विज्ञापन का कोटा भरना हम लोगों के लिए अत्यंत भावपूर्ण कार्य होता है।
परंतु इस पर्व के बाद पुनः सक्रिय होने का प्रयास करूँँगा।
सादर..।
भावपूर्ण नहीं तनावपूर्ण
हटाएंआदरणीया रेणु जी की विस्तृत टिप्पणी, अत्यंत ही समयानुकूल व सत्य है, शायद यह आँखें खोल दे सबकी।
जवाब देंहटाएंनमन, आपका मित्रवत स्नेह सदैव ही हमें मिलता रहा है और हर कदम कुछ सीखता ही रहा हूँ इस राह पर।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
खूबसूरत प्रस्तुति सखी यशोदा जी । मेरी छोटी सी वेदना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात। बहुत सुंदर प्रस्तुति दीदीजी! सभी रचनाएँ काफी प्रभावशाली एवं सराहनीय।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को साझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यबाद।
शुभ दिवस यशोदा जी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति जितनी भी सराहना की जाय कम है, सभी रचनाएं अपने में बेमिसाल है! मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदयतल से धन्य वाद.
जवाब देंहटाएंआज के इस शानदार अंक के लिए सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। सभी ने इतना हृदय स्पर्शी सृजन किया है, सभी साधुवाद के हकदार हैं।
जवाब देंहटाएंमेरी साधारण रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
सबसे बड़ा आभार व्यक्त करती हूं कि आज का आयोजन मेरी कविता की एक पंक्ति से चुना गया, सच कहूं तो ये मेरे लिए गौरव का पल है कि पाँचलिंकों ने मेरी रचना को शीर्षक का आधार समझा ।
पुनः सादर आभार ।
पुरूषोत्तम जी रेणु बहन और शशि भाई ने ब्लाग के प्रति ब्लागरो के रुख पर सटीक चिंतन दिया है कहने को बहुत कुछ है पर अभी अवसर उपयुक्त नहीं लग रहा आप सबने इतना कह ही दिया है देखें इसका कितना असर होता है।वैसे सबसे बड़ा पहलू है कि ये इतनी महत्वपूर्ण टिप्पणीयां भी कितनों ने पढ़ी होगी।
सादर किसी भी अतिक्रमण के लिए क्षमा याचना ।🙏
आभारी हूँ आदरणीया कुसुम जी।
हटाएंप्रिय कुसुम बहन , किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप करना मेरा लक्ष्य नहीं था | बस प्रसंगवश अपनी बात कहने का मन हो आया | बस ब्लॉग जगत में सबके मध्य सौहार्द और स्नेह रहे यही कामना है |और रही बात टिप्पणी पढ़े जाने की तो मुझे लगता है पांच लिंक का मंच बहुत उपयुक्त | यहाँ की बात समस्त ब्लॉग जगत तक जाती है |बस पाठकों का मान बना रहे , वे हमारी रचनाओं को अपना कीमती समय देते हैं | सस्नेह
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति दी ,सखी रेणु बड़ी ही सुंदर बात कही हैं कि ....... है सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हैं दर्द के सुर में गाते हैं ---
जवाब देंहटाएंसच ,वो कवि ही क्या जिसके हृदय में" वेदना "नहीं।एक से बढ़कर एक लाज़बाब रचनाएँ आज पढ़ने को मिली ,
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ,
सखी रेणु के कथन मैं भी इससे पूरी तरह सहमत हूँ ,बाकी आप वरिष्ठ गुणीजन जो उचित समझे, सादर नमन
बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंआज पटल की जीवन्तता तथा ब्लॉगर की चिन्ता देखने व समझने लायक रही। मुझे इसमें एक उज्जवल भविष्य का बीज छुपा दिख रहा है। समस्त जनों को शुभकामनाएँ ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का संकलन ! हमकदम के इस विशिष्ट संकलन में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआज का अंक ना केवल पठनीय रचनाओं के लिए जाना जाएगा बल्कि ब्लॉग जगत से संबंधित विशेष चर्चा के लिए भी जाना जाएगा। मेरे सृजन को अंक में शामिल करने हेतु विशेष आभार। सुंदर भूमिका, सुंदर अंक,सटीक विचार विमर्श। बहुत अच्छा लगा। देर से आने हेतु क्षमा चाहती हूँ।
जवाब देंहटाएं