सादर अभिवादन।
आज भारत में पिछले तीन दशक से एक आयातित पर्व 'वेलेंटाइन डे' की धूम है जो एक विशुद्ध बाज़ारवाद की उपज है। नयी पीढ़ी ने ख़ुश होने के बहाने इसे हाथों-हाथ अपना लिया है। हम भी ख़ुश हो लेते हैं ऐसे मौक़ों पर लोगों को ख़ुश देखकर। कट्टरवादी ऐसे पर्वों का विरोध करते हैं जो एक संकुचित सोच हो सकती है। महँगे उपहारों के आदान-प्रदान और समय की बर्बादी पर चिंतन करते हुए इसका सिर्फ़ मूल्याधारित वैचारिक स्वरुप अपनाया जाय तो परिणाम रचनात्मक हो सकते हैं।
बहरहाल आज गत वर्ष पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों का शहीदी दिवस है। 'पाँच लिंकों का आनन्द' परिवार देश के लिये बलिदान हुए शहीद सैनिकों को याद करते हुए श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
लगी सजाने रजनी आँचल
तारक चंद्र लगाए,
जगमग जुगनू भर मुट्ठी में
धरती पर बिखराए।
आधा-अधूरा
फीका भी
पर आँखों को
भाता .. सुहाता
सुहाना-सा
अधखिले फूल या
आधे-अधूरे
बिन गले मिले
कशिश भरे
प्यार की तरह ...
जब वो गुजरता है गली के कोने से,
तो छत के किसी कोने में खड़े होकर उसे देखते हैं ।
तब तक जब तक की वह नजरों से ओझल ना हो जाए।
उसकी हर अच्छी-बुरी बातों को
हम सही मानते हैं ।
"आज तुम्हारा जन्मदिवस है न। तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें एक सबक़ सिखाया है तुम्हें परख करनी है,दोस्तों की... हूँ ।"
दोनों माँ बेटे की आँखें भर आती हैं। माँ सौरभ को अपने सीने से लगा लेती है।
"परन्तु मम्मी सर को मेरा भी पक्ष सुनना चाहिए था। वो मुझे ऐसी....।"
सौरभ अपनी घुटन जताता हुआ।
"कभी-कभी कुछ न सुनना ही सब बयान कर जाता है,शायद वे आपको इस ज़िम्मेदारी के लायक नहीं समझते,आप ग़लत नहीं हो,सही बन कर दिखाओ।"
यह त्योहार भारतीय संस्कृति के परिचायक के रूप में भारत देश के सम्पूर्ण हिस्से में मनाया जाता है।इस दिन सभी लोग अपने गिले-शिकवे,वैर-भाव,मनमुटाव-नाराजगी,कपट-कटुताओं को भूलकर तथा उसे दूर करने के उद्वेश्य
से मित्रों एवं परिजनों के घर जाकर उनके गले मिलते हैं और मन से उनको दूर कर आपसी भाईचारा,प्यार तथा मेल- मिलाप बढ़ाते हैं।आज के दिन लोग सामाजिक भेद-भाव को निराकरण कर परस्पर प्रेम भाव संभाव स्थापित करते हैं।यह पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन अर्थात् चैत्र मास के कृष्ण प्रतिपदा
यानी साल के प्रथम दिवस को मनाया जाता है।इसी दिन से हमारा नववर्ष प्रारम्भ
होता है।
इस सप्ताह का विषय
हम-क़दम का नया विषय
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
अश्रुपुरित श्रद्धा सुमन..
जवाब देंहटाएंशहीद दिवस पर..
नायाब प्रस्तुति...
सादर
आज गत वर्ष पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों का शहीदी दिवस है। 'पाँच लिंकों का आनन्द' परिवार देश के लिये बलिदान हुए शहीद सैनिकों को याद करते हुए श्रद्धा-सुमन अर्पित करता है।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
बहुत ही सुंदर और सार्थक रचनाओं से परिपूर्ण प्रस्तुति।मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी को नमस्कार ! साथ ही आभार मेरी रचना को यहाँ साझा करने के लिए .. विशेषरूप से आज के अंक में शीर्षक की जगह मेरी रचना की पंक्ति को देखना सुबह-सुबह रोमांचित कर गया ..
जवाब देंहटाएंपर ये क्षणिक रोमांच .. मन से कहूँ तो पल भर में फीका और उदासीन ही हो गया ..
कल रात से ही टी वी के कुछ जिम्मेवार न्यूज़-चैनेल पुलवामा की बरसी की पूर्व-संध्या पर दिखला रहे, विश्लेषण कर रहे या यूँ कहें कि देश की भौतिकवादी भीड़ (जिनमें मैं भी हूँ) को उसकी याद दिला रहे ...तत्कालीन देश के .. विशेष कर शहीदों के परिवार वालों के दारुण चित्कार वाले दृश्य जो बार-बार अब द्रवित और व्यथित कर जा रहे हैं ...
मंच की ओर से उन शहीदों को श्रद्धा-सुमन अर्पण के लिए मंच के सभी लोगों को साधुवाद ..
(यूँ तो लोगबाग शहीदों को भी ; तथाकथित भगवान की तरह जिन्हें "श्रद्धा-सुमन" की जगह नाममात्र की "श्रद्धा" ..वह भी स्वार्थवश .. और केवल निरीह "सुमन" को तोड़-तोड़ कर चढ़ाते हैं ; फूल भर चढ़ा कर अपनी जिम्मेवारी की इतिश्री कर लेते हैं या एक सुसभ्य नागरिक होने का परिचय भर दे देते हैं ...और हाँ .. ऐसे कारुणिक पलों या कैंडल-मार्च की भी सेल्फी सोशल मिडिया पर चमकाने से गुरेज नहीं करते हैं ...) ...खैर ! ...
उम्दा लिंक से सजी शानदार प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय सर. मेरी लघुकथा को स्थान देने के लिये. बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसादर