सादर नमस्कार
लीजिए काफी अंतराल के
पश्चात आज हम हैं..
इच्छा तो होती थी
पर देवी जी को चलायमान और
व्यस्त रखने के लिए ही
हम अपनी अनुपस्थिति दर्ज करते आ रहे हैं
....
आज की रचनाएं कुछ यूँ है ...
तुम्हें मांगने की
कितनी आदत हो
गयी है न
शीर्ष पर पहुंचने
की होड़ में
जमीन पर बिखरे ये खुश्क पत्ते
गवाह हैं..
शायद कोई आंधी आई थी
या खुद ही दरख्तों ने
बेमौसम झाड़ दिया उन्हें
जो निरर्थक थे,
कौन रखता है उनको
जो बेकार हो जाते हैं
अपनी दिनभर की दिनचर्या में रोज ही ऐसे कई युवा मिल जाते हैं जो निढाल, निस्तेज, सुस्त नजर आते हैं। जैसे जबरदस्ती शरीर को ढो रहे हों। अधिकांश नवयुवकों को किसी ना किसी व्याधि से ग्रस्त दवा फांकते देखना बडा अजीब लगता है। आज के प्रतिस्पर्द्धात्मक समय में हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी समस्या से जुझता हुआ किसी यंत्र की कसी हुई तार की तरह हर वक्त तना रहता है। जिसके फलस्वरूप देखने में बिमारी ना लगने वाली, सर दर्द, कमर दर्द, अनिद्रा, अपच, कब्ज जैसी व्याधियां उसे अपने चंगुल में फंसाती चली जाती हैं,
तब हिना का रंग चढ़ाने में,
हरी पत्तियों को बारीक पीसना
लसलसे लेप बना कर
सींक से आड़ी तिरछी रेखाओं को उकेरना ,
फूल,पत्ती ,चाँद सितारे ,बना उसमें अक्स ढूंढना
मेहंदी की भीनी खुश्बू से सराबोर हो जाना ।
बस जरा सी बात इतनी
सुख की चादर ओढ़ मन पर
खोये हैं हम
सोये हैं हम !
एक सागर रौशनी का
पास ही कुछ दूर बहता
पर तमस का आवरण है
....
अब विषय भी बता दें
एक सौ आठवाँ विषय
वेदना
उदाहरण
चित्कारती वेदना, भ्रमित अविचल,
सृजन में संहार है, हर एक पल ।
खण्डित आशा रोती, संत्राण भी ,
आज दुष्कर है जीवन ,औ प्राण भी।।
रचनाकार कुसुम कोठारी
अंतिम तिथिः 22.02.2020
प्रकाशन तिथिः 24.02.2020
सम्पर्क फार्म द्वारा
सादर
आपका समर्पण नमन योग्य है
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
आभार..
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
...
सुंदर लिंकों से सजा अंक !
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति. हम-क़दम का गंभीर विषय. सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए खेद है, सुंदर प्रस्तुति ! शुभकामनाएँ व आभार !
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