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चितेरा कागा सुनाये बेसुरा आलाप
कोयल पपीहा बुलबुल लगाये उसे डाँट
फूलों के गुच्छे में सहेजकर ख़त
पाहुन का संदेशा लेकर आये बसंत
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हार्दिक आभार संग सस्नेहाशीष भाई
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
उम्दा लिंक्स चयन
हार्दिक आभार रविंद्र जी.. सत्य कहा मिथ्या रटते रटते सच हो जाता है गलत बातों का हमेशा समर्थन करते रहने से एक दिन वो गलत बातें सच को भी मात दे देती है... सभी चयनित रचनाएं बहुत अच्छी है ... शशि पुरवार जी की करारी खुशबू को पढ़ने का एक अलग ही आनंद मिला ..👌मेरी कविता बसंत को भी चयनित करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार..🙏
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंमिथ्या मिथ्या रटते-रटते
बीती रे उमरिया..
पुराना गुरुकुल हो तो
शिक्षा-नीति में
खोट नहीं हो तो सकता
जल्द बाजी में बनी
बेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
चार पंक्तियों में किसी भी गंभीर विषय पर ध्यान आकृष्ट करना, सार कह देने की रचनात्मकता एक विशेष गुण है।
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति रवींद्र जी।
सादर।
मिथ्या ही रटाई जा रही है। सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंशिक्षा नीति में खोट नहीं, पूरी शिक्षा नीति ही खोटी है। इसके दूरगामी परिणाम इतने भयानक होने वाले हैं कि हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते। प्राचीन काल में विषकन्याएँ बनाई जाती थीं। उन्हें बचपन से ही अत्यंत किंचित मात्रा में जहर हर रोज दिया जाता था। आज विषमानव बनाए जा रहे हैं। बचपन से ही स्पर्धा, दिखावा, अभिमान, शिक्षकों के प्रति दुराग्रह, सहनशक्ति और सहानुभूति का अभाव, शिक्षकों और स्कूल प्रशासन में राजनीति, काइयाँपन .....अधिकतर शिक्षा संस्थानों में यही सब सच है। बाकी सब मिथ्या है।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक देने हेतु सादर आभार रवींद्रजी।
सुन्दर प्रस्तुति है हमारी लिंक शामिल करने हेतु हृदय से धन्यवाद आपका , मिथ्या रटते-रटते
जवाब देंहटाएंसच हो सकता है?
शिक्षा-नीति में
खोट हो तो सकता है।
-रवीन्द्र सही कहा आपने