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रविवार, 9 फ़रवरी 2020

1668....कामना करता हूँ कि इस साल के चुनाव में --


जय मां हाटेशवरी.....
दिल्ली के चुनाव समाप्त हो गये.....
अब प्रतीक्षा है एक अच्छे दल की जीत की.....
इस आज के साथ पेश है....
आज के लिये मेरी पसंद.....

कवि
कवि सुन लेता है
वह सब भी
जो कहा ही न गया कभी
जी लेता है तमाम अनकहे,
अलिखित,अपठित गद्यांशों में ही

कागज के उपवन देखे ....
कृषक श्रमिक व्यापारी को
कर्ज भूख में मरते देखा
सूना चूल्हा पेट अंगारे
स्वानों को व्यंजन देखे -

लाइलाज तो प्रेम है
शब्दों में के कांटों का क्या किया जाए
जिन्हें शब्दों के कांटों की आदत हो जाती है
उन्हें गुलाब के कांटों के चुभन अच्छे लगने लगते हैं...

... अब मैं चुप हूँ
आईने के आगे,
एकांत में ,
मैं स्वयम से हतप्रभ थी
और धीरे धीरे मैंने
बचे हुए जान की बाजी लगा दी
कि अपने अस्तित्व पर
कुछ भारी नहीं पड़ने दूँगी ।
मैं बददुआ नहीं करती
तो अच्छाई का चोला जकड़कर रखने की खातिर
दुआ भी नहीं करती ।

जीवन का अर्थ...
और
संबंध का अर्थ
संबंध निभाकर ही मिल
सकता है ।

फूल ही फूल होते
दीवारों से यदि होती
हमें सच में नफ़रत
अपना-पराया
परिवार न होते


कामना करता हूँ कि इस साल के चुनाव में --
 सर्वोत्तम पार्टी को अच्छा जनमत मिले,
जनमत भी ऐसा कि पूर्ण बहुमत मिले।
जनता को आटा चावल दाल मिले,
और दो रूपये किलो हर माल मिले। 
बेघर को झुग्गी डालने की डगर मिले,
जल्दी ही झुग्गी की जगह पक्का घर मिले। 
अनाधिकृत घर का मालिकाना हक़ मिले,
मालिक को बिजली पानी नेट मुफ्त मिले। 
सब्ज़ी मार्किट में सस्ता प्याज मिले ,
और बैंक खातों में ज्यादा ब्याज मिले।

धन्यवाद।

7 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहह....
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ।बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
    सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष संग हार्दिक आभार आपका
    अति सुंदर प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  4. सनातन सँस्कृति का उद्घोष है 'निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहिं कपट छल छिद्र न भावा'...।

    परंतु जब उसमें पाखंड एवं आडम्बर की बहुलता से भारतीय समाज में आपसी वैमनस्यता का भाव भी प्रबल हो गया , तो सन्त कवियों ने इसके विरुद्ध एक वैचारिक आंदोलन शुरू किया । इन्हीं सन्त कवियों में कबीरदास के गुरुभाई रैदासजी भी शामिल थे ।

    उन्होंने -" मन चंगा तो कठौती में गंगा "
    का उद्घोष कर आंतरिक शुचिता की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया।

    कटौती के माध्यम से उन्होंनेअंतर्जगत की यात्रा का सन्देश दिया।
    आज ऐसे संत शिरोमणि की जयंती है। हमारे काशी में गुरु महाराज का भव्य उपासना स्थल है, परंतु विडंबना यह है कि ऐसे महापुरुषों को भी हम राजनीति से जोड़ देते हैं ।
    सुंदर भूमिका एवं प्रस्तुति।
    बिल्कुल अच्छे दल की विजय की सभी कामना करते हैं ...अच्छे लोगों की जय की कामना करते हैं ..अच्छे दिन की भी कामना करते हैं.. लेकिन ऐसे किसी जुमले की नहीं..।
    सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

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