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सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

836..केवल अंधेरी खाई में गिरना ही हमारा भाग्य होगा।

आज लिखना मैं बहुत ही आवश्यक नहीं समझता। 
परन्तु भारत में इन जनप्रतिनिधियों की मनमानी देखकर हृदय में 
इनके प्रति सम्मान घटता जा रहा है। 
नित नये नियम - क़ानून केवल अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु, संविधान की मर्यादा को दरकिनार करना, विचारों की अभिव्यक्ति को 
कुचलने का षड़यंत्र ! 
इस अनोखे लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए कहीं से हितकर नहीं।  
अतः कुछ न लिखने से बेहतर कुछ लिखना अतिआवश्यक है। 
घूमने दो समय का पहिया !
चलने दो हमें भेड़ -चाल !
आशा है एक दिवस अवश्य पहुँच जायेंगे !
उस अँधेरी खाई की तरफ़ 
आवाज़ लगायेंगे और प्रतिउत्तर में हमारी ही ग़लतियों की 
प्रतिध्वनि हमें सुनाई देंगी। 
परन्तु अफ़सोस तब हम असमर्थ होंगे !
केवल अंधेरी खाई में गिरना ही हमारा भाग्य होगा।


सादर अभिवादन। 


 कवि : नितीश कुमार , कक्षा : 7th ,अपनाघर 

ऐ खुदा कुछ ऐसा कर, 
कि मेरी जिंदगी सुधर जाए | 
काश कुछ ऐसा हो, 
जिस पर मैं चल सकूं |  

आदरणीय "ओंकार" 


छूट गया पीछे स्टेशन,
ओझल हो गए परिजन,
जाने-पहचाने मकान,
गली-कूचे, सड़कें,
पेड़,चबूतरे- सब कुछ.

आदरणीय  "जयन्ती प्रसाद शर्मा"  
 शाह झांकते है बगल, हावी रहते चोर।।
बागी-दागी तंत्र को, कर देते कमजोर।
शासन का इन पर नहीं, चल पाता है जोर।। 
तुष्टिकरण समाज में, पैदा करता भेद। 

आदरणीय "ज्योति खरे" 


 तुम्हारे खामोश शब्द
समुंदर की लहरों जैसा कांपते रहे
और मैं 
प्रेम को बसाने की जिद में
बनाता रहा मिट्टी का घरोंदा

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


वक्त की रफ्तार ने जीना सिखाया,
जिन्दगी ने व्याकरण को है भुलाया,
प्यार-उल्फत के ठिकाने खो गये हैं।


"प्रकृति की कृपा" 
विचारों का प्रभाव पड़े !

18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    घूमने दो समय का पहिया !
    चलने दो हमें भेड़ -चाल !
    आशा है एक दिवस अवश्य पहुँच जायेंगे !
    उस नए बने बागीचे तक..
    जहाँ महक होगी जीवन की
    होंगी पल्लवित आशाएँ मन की
    आशावादी हूँ मैं...तभी तो प्राण है
    तन मे
    एक अच्छी प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय ध्रुव जी,
    समसामयिक व्यवस्था पर आपकी खिन्नता और खीज भरी अभिव्यक्ति स्वाभाविक है।
    सुंदर लिंकों का संयोजन,सभी रचनाएँ अति सराहनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात....
    सांप हैं...
    अमृत की उम्मीद व्यर्थ है...
    नेवलों का इन्तजार करिए...
    वे आ रहे हैं...
    अच्छी प्रस्तुति....
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  4. अपने अपने स्वास्थ की चिन्ता में डूबे हैं सनम (लोक) तंत्र बीमार होना ही है । बहुत सुन्दर प्रस्तुति ध्रुव जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. सस्नेहाशीष संग शुभप्रभात
    साहित्यकारों का काम है समाज के हालातों को बताना बदलना नेताओं को है नेताओं का गर्दन नापना मतदाता का काम है
    मतदाता सजग नहीं हालात बदल नहीं सकते
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  6. सही कहा ध्रुव जी ,विचारों की अभिव्यक्ति को कुचलने के षड़यंत्र, इस अनोखे लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिये बिल्कुल हितकर नहीं , उस अंधेरी खायी की तरफ आवाज लगाएंगे और प्रतिउत्तर मे हमे अपनी ही गलतियों की प्रतिध्वनि सुनायी देंगी,अफसोस की तब हम असमर्थ होंगे केवल अंधेरी खायी मैं गिरना ही हमारा भाग्य होगा ।
    सही मैं ध्रुव जी बिल्कुल सही कहा

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर,उम्दा लिंक संकलन......
    अपनी ही गलतियों की प्रतिवनि सुनाई देगी....
    बहुत खूब।
    लाजवाब अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय ध्रुव जी,
    समसामयिक व्यवस्था पर तंज स्वभाविक है
    सटीक और सार्थक प्रस्तुति, सभी रचनाकारों को बधाई।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  9. सादर अभिवादन भाई ध्रुव जी
    हम लिखते है
    मीडिया चिल्ला-चिल्ला कर सुनाता है
    फिर भी नहीं रेंगती जूँ
    सरकार के कान में...
    चारा इन्तजार के सिवा कुछ भी नहीं
    करिए प्रतीक्षा..
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  10. सहमत आपके विचार प्रवाह से ... वो समय्जल्दी ही आने वाला है अगर नहीं जागे तो ...
    अच्छा संकलन ...

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीय ध्रुव जी सटीक और सार्थक प्रस्तुति,

    जवाब देंहटाएं
  12. सुन्दर संकलन. मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रिय ध्रुव -- सार्थक चिंतन से भरी भूमिका सहित बहुत ही सराहनीय है आपका संजोया आज का संकलन | सभी रचनाएँ पढ़ी | बहुत अच्छी लगी | नन्हे कवियों को आधार मंच प्रदान करने कू आपकी कोशिश की सराहना करती हूँ | सस्नेह शुभकामना आपको |

    जवाब देंहटाएं
  14. विचारणीय भूमिका पर आपको बधाई। जनप्रतिनिधि अब जन भ़म प्रतिनिधि बन गए हैं। राजनीति का उद्देश्य अब समाज कल्याण नहीं खुद का कल्याण हो गया है। सुंदर लिंक्स। चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कविवर दिनकर का कथन यहां मौजू हो उठा है- "राजनीति जब-जब फिसलेगी साहित्य उसे संभाल लेगा"

      हटाएं
  15. बहुत सुंदर सूत्र संयोजन के लिए साधुवाद
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सभी रचनाकारों को बधाई

    सादर

    जवाब देंहटाएं

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