शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
मंगलवारीय अंक में पढ़िए चंद चुनिंदा रचनाएँ-
अब उम्मीद की वह पतली डोर भी टूट गई
जिसे सँजोए रखती थी तमाम झंझावतों में
और हथेली की लकीरों में तलाशती थी।
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रोज थैला उठाए
मार्केट में दिखता हूं,
हर दुकानदार से
करता फजीहता हूं।
घर में है
लाइब्रेरी भरी सैकड़ों किताबों से,
पर पढ़ने लिखने
में बस करता कविता हूं।
उन
श्रीमहादेव का नित स्मरण करो जो जगत के रक्षक हैं
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर रचनाओं से सुसज्जित अंक में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार 🙏
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन अंक,
जवाब देंहटाएंशामिल करने के लिए शुक्रिया।
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