शीर्षक पंक्ति: आदरणीय प्रोफ़ेसर गोपेश मोहन जैसवाल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए ब्लॉगर डॉट कॉम पर प्रकाशित रचनाएँ-
प्रेम कविता | इतराता है प्रेम | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
उस पल
इतराता है प्रेम
खुद पर,
जब गुज़रता है
एक भिखारी के
हृदय से हो कर
और
पाता है
मधुर संकेत
एक भिखारिन से
*****
*****
“तो आगे भी सैदव अँधेरे में रहने के लिए तैयार रहो- जाल में फँसी हजारों गौरैया-मैना की आजादी का फ़रमान जारी हो सकता था…! तुम उदाहरण बन सकती थी। लेकिन तुमने ही स्वतंत्रता और स्वच्छंदता की बारीक अन्तर को नहीं समझा।”
‘चलती का नाम गाड़ी’फ़िल्म का तो
नाम सुन कर ही पिताजी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया था.
इस फ़िल्म को बच्चों को दिखाए जाने से
साफ़ इंकार करते हुए हमारे न्यायाधीश पिताजी ने माँ से कहा था –
‘बच्चों को चालू-बदमाश बनाने के लिए ये फ़िल्म दिखाने की क्या
ज़रुरत है?
सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंशानदार रविंद्र जी...। बहुत अच्छा अंक है...पठनीय सामग्री से सजा हुआ। बधाई आपको और सभी रचनाकार साथियों को भी खूब बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक. आभार
जवाब देंहटाएं