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शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

4446...सफ़र जीवन का दूभर अब

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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टप-टपाती मादक बूँदों की
रुनझुनी खनक,
मेंहदी की 
खुशबू से भींगा दिन,
पीपल की बाहों में
झूमते हिंडोले,
पेड़ों के पत्तों,
छत के किनारी से
टूटती
मोतियों की पारदर्शी लड़ियाँ
आसमान के
माथे पर बिखरी
शिव की घनघोर जटाओं से
निसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
उतरती हैं
नभ से धरा पर,
हरकर सारा विष ताप का
 अमृत बरसाकर
प्रकृति के पोर-पोर में
भरती है
प्राणदायिनी रस
सावन में...।
#श्वेता


आज की रचनाएँ-


स्मृति लोक हुए  धुंधले,
ना भटकती बीते लम्हों में !
जो आज है वो सबसे बेहतर
ये सोच के खुश हो जाती माँ !  

 
साथ ना देती जर्ज़र काया 
हुआ सफर जीवन का दूभर अब
पर चलती जाती अपनी धुन में
तनिक भी ना घबराती माँ!




नींद, डर, ख्व़ाब, आते-जाते हैं,
मौत आ कर कभी नहीं जाती.

आँख से हाँ लबों से ना, ना, ना,
ये अदा हुस्न की नहीं जाती.

राज़ की बात ऐसी होती है,
हर किसी से जो की नहीं जाती.


ख़्वाबों का फेरीवाला बेच
जाता है रंगीन बुलबुले,
शून्य हथेलियों में
रह जाता है
मृत आदिम
सितारा ।




तुम्हारी विरह व्यथा को 
मैं हर पल भोग रहा हूँ, 
ओझल होती प्रतीक्षा में 
अश्रु धारा बहा रहा हूँ। 

भूले - भटके ख़ुशी कोई 
जब जीवन राग छेड़ती है,
तभी तुम्हारी यादें आकर 
आँखों से ढुलक जाती है। 




छतरियों छातों का उपयोग इंसानों द्वारा कबसे किया जा रहा है ये बात इतनी पुरानी है कि ठीक ठीक कोई साक्ष्य ही नहीं है , और ये दुनिया भर की सभ्यताओं में पत्ते और बांस की पत्तियों के बने छातों से लेकर हीरे जवाहरात जड़े छत्रों तक अलग अलग साज स्वरूप में उपस्थित रहे । 



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. हरकर सारा विष ताप का
    अमृत बरसाकर
    प्रकृति के पोर-पोर में
    भरती है
    प्राणदायिनी रस
    सावन में...।
    श्रावण मास आ ही गया आखिर
    बेहतरीन अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी हलचल लिंक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर हलचल लिंक प्रस्तुति 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. पोस्ट को मान स्थान देने के लिए आभार शुक्रिया। बाकी की सभी खूबसूरत पोस्टों को भी जाकर पढ़ते हैं

    जवाब देंहटाएं
  5. सावन की बूँदों के जरिये एक अभिनव दर्शन प्रस्तुत करती भूमिका के साथ एक सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार प्रिय श्वेता | पांच लिंक में मेरी रचना का आना मेरे लिए सदैव हर्ष का विषय रहा है | प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सभी स्नेही पाठकों का हार्दिक आभार |दिगंबर जी की मधुर ग़ज़ल मन को मोह गयी तो अजय जी का लेख छतरी कथा सुनाकर बचपन की मधुर स्मृतियों को जगा गया | भागीरथ जी की प्रेमिल रचना के साथ शांतनु जी की रचना बहुत अच्छी लगी |सभी को शुभकामनाएं और बधाई | और तुम भी अपने ब्लॉग को समय दो| मेरी शुभकामना और प्यार |

    जवाब देंहटाएं

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