रुनझुनी खनक,
मेंहदी की
खुशबू से भींगा दिन,
पीपल की बाहों में
झूमते हिंडोले,
पेड़ों के पत्तों,
छत के किनारी से
टूटती
मोतियों की पारदर्शी लड़ियाँ
आसमान के
माथे पर बिखरी
शिव की घनघोर जटाओं से
निसृत
गंगा-सी पवित्र
दूधिया धाराएँ
उतरती हैं
नभ से धरा पर,
हरकर सारा विष ताप का
अमृत बरसाकर
प्रकृति के पोर-पोर में
भरती है
प्राणदायिनी रस
सावन में...।
#श्वेता
स्मृति लोक हुए धुंधले,ना भटकती बीते लम्हों में !जो आज है वो सबसे बेहतरये सोच के खुश हो जाती माँ !
मौत आ कर कभी नहीं जाती.
आँख से हाँ लबों से ना, ना, ना,
ये अदा हुस्न की नहीं जाती.
राज़ की बात ऐसी होती है,
हर किसी से जो की नहीं जाती.
जाता है रंगीन बुलबुले,
शून्य हथेलियों में
रह जाता है
मृत आदिम
सितारा ।





हरकर सारा विष ताप का
जवाब देंहटाएंअमृत बरसाकर
प्रकृति के पोर-पोर में
भरती है
प्राणदायिनी रस
सावन में...।
श्रावण मास आ ही गया आखिर
बेहतरीन अंक
आभार
सादर
बहुत अच्छी हलचल लिंक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल लिंक प्रस्तुति 🙏
जवाब देंहटाएंमौसम सुहाना हो गया !
जवाब देंहटाएंपोस्ट को मान स्थान देने के लिए आभार शुक्रिया। बाकी की सभी खूबसूरत पोस्टों को भी जाकर पढ़ते हैं
जवाब देंहटाएंमीठी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसावन की बूँदों के जरिये एक अभिनव दर्शन प्रस्तुत करती भूमिका के साथ एक सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार प्रिय श्वेता | पांच लिंक में मेरी रचना का आना मेरे लिए सदैव हर्ष का विषय रहा है | प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सभी स्नेही पाठकों का हार्दिक आभार |दिगंबर जी की मधुर ग़ज़ल मन को मोह गयी तो अजय जी का लेख छतरी कथा सुनाकर बचपन की मधुर स्मृतियों को जगा गया | भागीरथ जी की प्रेमिल रचना के साथ शांतनु जी की रचना बहुत अच्छी लगी |सभी को शुभकामनाएं और बधाई | और तुम भी अपने ब्लॉग को समय दो| मेरी शुभकामना और प्यार |
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