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सोमवार, 21 जुलाई 2025

4456...पानी सारे जहां का सुथरा और साफ हो गया है...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ.सुशील कुमार जोशी जी की रचना से।

सादर अभिवादन।

सोमवारीय अंक में पढ़िए पसंदीदा रचनाएँ-

शेख ही जब गुबार हो गया है

उलूकताकता रह आसमान की ओर लगातार टकटकी लगा कर

कारवां किसलिए सोचना हुआ अब यहाँ शेख ही जब गुबार हो गया है |

*****

सभी को बोलता हूँ मीत न पाया अब तक ...

हर एक मोड़ पर मिले हैं अनेकों रहबर,
तुम्हारी सोच के प्रतीत न पाया अब तक.

प्रवाह, सोच, लफ़्ज़, का है ख़ज़ाना भर के,
बहर में फिर भी एक गीत न पाया अब तक.
*****

एक ग़ज़ल -अब तो बाज़ार की मेहंदी लिए बैठा सावन

फैसले होंगे मगर न्याय की उम्मीद नहीं

सच पे है धूल गवाहान मुकरने वाले

 अब तो बाज़ार की मेहंदी लिए बैठा सावन

रंग असली तो नहीं इससे उभरने वाले

*****

झूठ

जो सत्य है वह

यह संसार न जानता है

न जानने की इच्छा रखता है

और इच्छा से चलने वाले

इस संसार में

'इच्छा' के विरुद्ध का सत्य

लिखकर भी क्या ही करूँ?

सब फिर झूठ हो जाएगा।

*****

सिस्टम अभी ज़िंदा है!

सिस्टम ने इस बार चूक नहीं की।वह उसे ही ताक रहा था।गड्ढे के तर्क सुनकर उसने लंबी साँस भरी।यह देखकर नाले को और घबराहट हुई।उसे लगा कि सारा दोष उसी पर मढ़ने की तैयारी है।नाले की सोच से ज़्यादा सिस्टम की सोच निकली।उसने सवाल करने के बजाय जवाब दे दिया, ‘ हर साल तुम्हारे रख-रखाव में करोड़ों का ख़र्च होता है फिर भी तुम्हारा पेट नहीं भरता।लगता है अब बजट और बढ़ाना पड़ेगा।सिस्टम एक नाले से हार मान ले,यह मंजूर नहीं।

*****

फिर मिलेंगे।

 रवीन्द्र सिंह यादव

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छे पठनीय लिंक्स. सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! सभी लिन्क् पढ़े मैंने।
    सब बहुत बढ़िया हैं।
    सुंदर रचनाओं का संकलन प्रस्तुत किया आपने सर।
    साथ ही मेरी रचना को भी स्थान दिया आपने! आपका हार्दिक आभार 🙏
    सभी को प्रणाम 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन अंक 🙏 सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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