आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
कई बार बहुत कुछ
समझने के बाद भी
बहुत कुछ
छूट जाता है समझ के लिए
चिराग़ तले अँधेरा है
यह बात भला..,
चिराग़ को भी कहाँ पता होती है
न दिशाओं का
न गुणों का
भावातीत, कालातीत व देशातीत
वह बस अपने आप में स्थित है
वह एक ही आधार है
पर वह सदा अबदल है
अजन्मे परमेश्वर प्रचंड अखंड
तुम हो प्रलय करने वाले
सबको आनंद भी देने वाले
सदा त्रिशूल रखते हो हाथ
हम भजते तुमको भोलेनाथ
रखना माथे सदा अपना हाथ
मिलते हैं अगले अंक में।

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सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद श्वेता जी ! स्नेहिल नमस्कार!
जवाब देंहटाएंविचारों का अवमूल्यन उन्हीं के लिए है जो अविचारी हैं, विचारवान तो कहीं से भी मोती चुन लेगा, सार्थक भूमिका और सुंदर रचनाओं का संयोजन, आभार!
जवाब देंहटाएंआपका आभार मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु,,,
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
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