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शनिवार, 5 जुलाई 2025

4440..एक अनसुनी चीख..

।।प्रातःवंदन।।

" सखी !

बादल थे नभ में छाये

बदला था रंग समय का

थी प्रकृति भरी करूणा में

कर उपचय मेघ निश्चय का।।

वे विविध रूप धारण कर

नभ–तल में घूम रहे थे

गिरि के ऊँचे शिखरों को

गौरव से चूम रहे थे..!!"

 हरिऔध 

प्रकृति की बदलती तस्वीरे और भीगे भीगे दिन की शनिवारिय  शुभकामना के साथ शामिल रचनाओ का आनन्द ले..

राइटर्स रेजीडेंसी , पटना में यौन अपराध के आरोप के बहाने और मायने

दयानंद पांडेय 


✨️

"भड़ास : एक अनसुनी चीख़"

 कोई नहीं पढ़ता मेरी लिखी कहानियां

बातें भी मेरी लगती उनको बचकानियां

लहू निचोड़ के स्याही पन्नों पे उतार दी.. 

फिर भी मेहनत मेरी उनको लगती क्यूँ नादानियां? 

कल जब सारा शहर होगा मेरे आगे पीछे..... 

शायद तब मेरी शोहरत देगी उनको परेशानियां

मैं उनको फिर भी नहीं बताऊँगा उनकी हकीकत

मैं भूल नहीं सकता खुदा ने जो की है मेहरबानि

✨️

आलिंगन

विभोर स्पर्श पलकों बंद आँखों स्पन्दन राज का l

विरह ओस बूँदों सी अधखुले नयनों साँझ का ll

विशृंखल कोमल अंकुरन सांझी हृदय राह का l

व्यग्र उच्छृंखल मन ढूंढ रहा साथ माहताब का ll

✨️

ऊपर-नीचे जग है क्रीड़ा


गहराई में जाकर देखें 

एक धरा से उपजे हैं सब, 

ऊँचाई पर बैठ निहारें 

सूक्ष्म हुए से खो जाते तब !

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️


3 टिप्‍पणियां:

  1. आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार और धन्यवाद. 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात, हरिऔध जी की सुंदर रचना में शिखरों को छूते बादलों का ज़िक्र सुनकर हिमालय का स्मरण हो आया, सुंदर अंक, आभार!

    जवाब देंहटाएं

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