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शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

4460...हरी बूँद सावन के अंधे को ललचाती है

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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मानवता की सीख बचपन से ही
कंठस्थ करवाया जाता है
जब घर के बड़े समझाते हैं
"सबसे प्यार करो"
"पशुओं पर दया करो"
"भूखे को खाना खिलाओ"
"प्यासे को पानी पिलाओ"
"किसी को अपने फायदे के लिए मत सताओ"
और भी न जाने कितनी अनगिनत बातें होगी
जो हम सभी समझते और जानते हैं।
फिर भी समाज में अमानवीयता और बर्बरता 
की बहुलता,असंतुलन
क्या हमारी जड़ोंं के
खोखलेपन का संकेत है?
या फिर,
मानवता और दानवता के 
दो पाटों में पीसते मनुष्य मन
की कहानी
सृष्टि के विधान के अनुसार? 
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आज की रचनाएँ -


वो भी हरा दिखाता है
हरे भरे से सबको भरमाता है 
कौन देखता है उसको कौन सोचता है उसको
उसके हरे के भरे से मन भरता है भरता  जाता है

मन भरता जाता है
इतना भरता  है कि बहने लगता है हरा हरा 
भरे की बाढ़ आ जाती है 
हरे की पांचों अगुलियां घी में होती हैं 
कढ़ाई लबालब लेती है सारा हरा तुम्हारा चूस



एक व्यक्तित्त्व
उम्मीदों के बिना भी 
जीते जाने के लिए
दुनिया के ज़ख़्मों पर 
नेह का लेप लगाने के लिए
यह सहज साँचा 
हमने अब खो दिया है 



जब बिन विषधर के ज़ुबां उगलने लगे ज़हर
शब्द जब बन जाएँ तीर, और ढाल रहे बेअसर
फिर क्यों न टूटे कोई, जैसे पतझड़ में पत्ता
जब जिस्म बेच फिर भी चूल्हा न जले घर का अगर




पास हो कर भी,
नहीं हैं पिता,
तुम्हें पीट-पीट कर उतारती,
माँ अपनी खिन्नता।
तुम्हारी दिव्यांगता,
जिसे कोई नहीं  स्वीकारता।
घर में मिली उपेक्षा,
तुम्हारे जीवन की परीक्षा।

होती हूं मैं भी आहत,
देख तुम्हारे कोमल मन की छटपटाहट।
काश तुम्हारा भाग्य बदल पाती,
संसार की सारी खुशियां,
तुम्हारे जीवन में भर पाती।




वो

अपना
फ़र्ज़
निभा गया, हम अपना परिचय पत्र
ढूंढते रह गए, बड़ी ख़ूबसूरती
से हमें प्रतिध्वनि विहीन
आवाज़ कर गया,
एक सरसरी
नज़र से
उसने




आसामी-गुजराती-मराठी 
क्षेत्रीय भाषा सबको नही आती 
फिर भी रहते मिलकर साथी 
नहीं उठाते भाषा पर लाठी ।
एक ही धरती एक ही आह्वान 
था रूदन-क्रंदन एक समान 
देश हित पर बलिदान हुये थे
उत्सर्ग सबने प्राण किये थे ।

 

लौहपुरुष के छात्र जीवन की एक घटना बताई जाती है। कहा जाता है कि वह अपने स्कूल पैदल ही जाते थे। उनके साथ आसपास के अन्य छात्र भी रहते थे। एक दिन जब छात्रों का यह गुट स्कूल जा रहा था, तो उनके साथियों ने पाया कि उनका साथी वल्लभ बहुत पीछे रह गया है। वह लोग रुक गए। थोड़ी देर बाद जब वल्लभ भाई आए तो उनके साथियों ने पूछा कि तुम कहां रुक गए थे। स्कूल के लिए काफी देर हो रही है। तब वल्लभ भाई ने जवाब दिया कि रास्ते में एक पत्थर गड़ा हुआ था जिससे लोगों को आते-जाते समय चोट लग सकती थी। 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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6 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अंक, सारी रचनाये बहुत अच्छी है, आज के इस बेहतरीन अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार और धन्यवाद जी 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीया मैम,
    सादर चरण स्पर्श। मेरी रचना को आज के संकलन में सम्मिलित करने के लिए अनेक आभार। आपका स्नेहाशीष अनमोल है मेरे लिए। इतने वर्षों के अवकाश के बाद भी इतना स्नेह और प्रोत्साहन देख कर कृतज्ञ हूँ। प्रस्तुति अत्यंत सुंदर और प्रेरक है। हर एक रचना पढूंगी। पुनः आभार एवं प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन अंक प्रिय श्वेता

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर, आपने काफी अच्छी रचनाएं चुनी हैं। आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा,साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

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