।।प्रातःवंदन।।
शब्द के छल छद्म की मारीचिक़ा
शब्द के व्यामोह ने जग को ठगा है
शब्द अब आकार लिपि आबद्ध हैं
संचरण अनुभूतियों का खो गया हैy
शब्द के गुरु भार को अब कौन ढोए ?
शब्द के उस पार मन रहने लगा है।
-ड़ा मृदुल कीर्ति
शब्द की मारीचिका और कहें अनकहे को ढूंढने की कोशिशें..
अभिनंदन
✨️
कदम गिने बगैर राह पर चलता रहा।
बेहिसाब वक्त से सवाल करता रहा।
लोग कोशिश करते रहे बैसाखी बनने की।
सहारा जब भी लिया, मैं गिरता रहा।
✨️
पेड़ों पे झूले पड़े सखियों का है शोर
खनक रही हैं चूड़ियाँ मन आनंद विभोर
मन आनंद विभोर मगन मन झूल रही हैं
कजरी, गीत, मल्हार, सभी दुख भूल रही हैं
✨️
सत्य और भ्रम
माना कदम-कदम पर बाधायें हैं
मोटी-मोटी रस्सियों से अवरुद्ध है पथ
आसक्ति के जालों में क़ैद
मन आदमी का
न जाने कितने भयों से है ग्रस्त ..
✨️
मर्माहत पतंग की डोर ढूंढती
है अंतिम ठिकाना, उस
दरख़्त के शाख से
कभी हमें भी
मिलवाना ।
अनगिनत वेदना समेटे अटूट
है रूहानी पतवार,भीगे
पंख लिए पखेरू को
गंतव्य तक..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️

सुप्रभात! शब्दों का काम है भीतर के मौन को जगाना, शब्द जब सवाल बन जाते हैं तो अपना उद्देश्य नहीं पा सकते। सराहनीय रचनाओं की खबर देता सुंदर अंक, 'मन पाये विश्राम जहाँ' को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार पम्मी जी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति 🙏
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