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रविवार, 13 जुलाई 2025

4448 ....रत्ती भर मतलब जरा सा


सादर अभिवादन

रत्ती भर के

वात्सल्य
ट्रेन का खचाखच भरा डिब्बा बेतहाशा गर्मी,सामने वाली बर्थ पर एक माँ अपने बच्चे को 
चुप कराने में लगी। बच्चा रोता रहा, माँ की डांट भी उसे चुप नहीं करा सकी, इस 
तरफ की बर्थ पर एक माँ अपने लाडले को दूध की बोतल मुंह में दिए थी, 
रोता बच्चा चुप होकर सो गया।
माँ ने सामने वाले माँ और जिद करते बच्चे को देखा, भूख से वह भी रो रहा था, 
कोई डांट-फटकार उसे चुप नहीं करा पा रही थी, भूखा है बच्चा तुम्हारा। कब से देख रही हूं, ... 
बुरा न मानो तो ये बचा दूध उसे पिला दो, दूसरी मां ने बिना ना-नुकुर किए बच्चे के 
मुख में बोतल दे दी। बच्चे की क्या जात?
कम्पार्टमेन्ट में कुछ आवाजें. किसी ने कहा-और मां की भी कोई जाति होती है ? 
पूरा डिब्बा वात्सल्य रस से सराबोर था। दोनों माताएं अपने लाडले को 
देख आश्वस्त हुई जा रही थी।
-पुस्तक माँ से साभार  

और भी है... वो भी आएगा पर शैनेः शैनेः

‘को’ नहीं ‘की’


परमात्मा ही जगत के रूप में
नये-नये रूप धर रहा है
उसकी मानें तो हम उसी के रूप हैं
उसी के गुण हमें धारने हैं
स्वयं को संवरते हुए, देखना है
प्रकृति के भिन्न-भिन्न रूपों में
उसकी ही छवि को
धरा पर पुष्प और
गगन पर रवि को
तब वही हमारे द्वारा कर्म करता है



रत्ती: आश्चर्य में डालता है


प्राचीन काल में जब मापने का कोई सही पैमाना नहीं था तब सोना, जेवरात का 
वजन मापने के लिए इसी रत्ती के दाने का इस्तेमाल किया जाता था।

 सबसे हैरानी की बात तो यह है कि इस फली की आयु कितनी भी क्यों न हो, लेकिन इसके अंदर स्थापित बीजों का वजन एक समान ही 121.5 मिलीग्राम (एक ग्राम का लगभग 8वां भाग) होता है।
तात्पर्य यह कि वजन में जरा सा एवं एक समान होने के विशिष्ट गुण की वजह से, कुछ मापने के लिए जैसे रत्ती प्रयोग में लाते हैं। उसी तरह किसी के जरा सा गुण, स्वभाव, कर्म मापने का एक स्थापित पैमाना बन गया यह "रत्ती" शब्द।

रत्ती भर मतलब जरा सा ।



ऋषि मुनि और उनका आध्यात्म


महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं।

 एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली के अनुसार सप्तर्षि - कश्यप, वशिष्ठ, मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु हैं।

इस प्रकार भारतवर्ष में ऋषि मुनि अध्यात्म के प्रणेता माने जाते हैं।ऋषि वशिष्ठ हर मन्वंतर में निर्विवाद रूप से सप्तऋषियों में एक माने गए हैं। जनमानस के मानसिक विकास एवं शांति में अध्यात्म का बहुत महत्व है।



देखा था जब तुम्हें पहली बार
तो न जाने क्यों दिल दिमाग को
झकझोर रही थी महुआ की
मदिर गंध बारम्बार !
उठती गिरती बरौनियों की
चिलमन में छिपी तुम्हारी
नशीली सी आँखें,
जैसे दे रहीं थीं आमंत्रण मुझे
कि ‘चलो उड़ चलें दूर गगन में
खोल कर अपनी पाँखें’ !


निराकार विकराल महाकाल बनो हमारे ढाल


तुम मोह को हरने वाले
मन को मथ डालने वाले
सबके दुःख दर्द हरने वाले
पार्वती जी के दिल में रहने वाले

वो मेरे कैलाशपति भोलेनाथ
हम भजते तुमको भोलेनाथ
रखना माथे सदा अपना हाथ




आज बस
सादर वंदन

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