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मंगलवार, 8 जुलाई 2025

4443...उपेक्षाओं का ढेर...

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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शीशा है ज़िंदगी यारो
जैसी सूरत बनाओगे
वैसी ही तस्वीर पाओगे
जीना तो  है हर हाल में 
गम़ रोको हँसी की ढाल में
चुनना हो गर जीवनपथ पे
 अनदेखा कर के आँसू यारों
प्यारी-सी मुस्कान उठा लो
बच्चे,बूढ़े,जवान,स्त्री या पुरुष हर किसी के चेहरे पर सबसे
प्यारा लगता है मुस्कान का गहना।
तन का बहुमूल्य श्रृंगार जिससे व्यक्तित्व निखर जाता है जिसे
 देखकर सुखद अनुभूति होती है।
आपने कभी महसूस किया है प्रकृति की मुस्कान,
फूल,तितली,पेड़,बादल ,झरने,बारिश,धूप
हवाएँ,चिड़िया, सब मुस्कुराते है और
जगत में प्राण की संजीवनी 
प्रवाहित करते हैं।
मन अगर उदास हो तो किसी मासूम-सी
मुस्कान का जादू चल ही जाता है।
तो चलिए प्यारी सी मुस्कान के साथ
पढ़ते हैं-
आज की रचनाएँ-


कहीं दूर वादियों में उतरते हैं घने बादलों के डेरे,
बियाबां के बाशिन्दे आख़िर जाएं तो कहाँ जाएं,

फूलों की रहगुज़र में हम छोड़ आए दिल अपना,
कोहसारों के दरमियां भटकती हैं ख़ामोश सदाएं



थोड़ा सोचिए कि वाशिंग मशीन और हमारा जीवन भी कुछ मिलता जुलता है। कितनी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और उपेक्षाओं का ढेर हमने भर रखा है मन की टंकी में। प्रतिक्षण किनारे तक भरी हुई और क्षण क्षण रीतती हुई मन की टंकी । इसका पानी का लेवल सही बना रहे इसके लिए अथक प्रयासों का बिलोना करता हमारा शरीर, मन और प्राण। पता ही नहीं चलता , कब पानी ज्यादा भर गया तो मशीन अटक गई, पानी कम पड़ गया है तो भी अटक गए। 


जो भ्रमित करता रहा है 
 पकड़ी है प्रकाश की डोरी
जीवन जैसे एक किताब कोरी 
जिसमें लिखा जाना है 
हर पल एक शब्द नया
 हो चाह कोई भी 
मन सरवर कर देती है गंदला


उन यादों के झुरमुट से कुछ खुशियाँ, कुछ अच्छे अनुभव और ज्ञान लेकर झटपट वर्तमान की झोली में डाल नकारात्मक अनुभवों की यादों को लेट गो करके तटस्थ भाव से वर्तमान पर ध्यान केन्द्रित कर पाएं तो ठीक वरना 'बीती ताहि बिसार दे'  की कहावत ही सही क्योंकि कहीं हमारे अतीत से जुड़ी ये कुछ नकारात्मक यादें हमारे अवेयरनेस को बोझिल कर हमारे आज की खुशियों को भी फीका ना कर दें ।



इस पवित्र पर कठिन यात्रा में भाग लेने वाले कांवड़िए अपनी पूरी यात्रा के दौरान नंगे पांव, बिना कावंड को नीचे रखे, अपने आराध्य को खुश करने के लिए सात्विक जीवन शैली अपनाए रखते हैं ! यात्रा में तामसिक भोजन, दुर्व्यवहार, कदाचार पूर्णतया निषेद्ध होता है ! यहां तक कि एक-दूसरे का नाम तक नहीं लेते ! सब ''बोल बम'' हो जाते हैं ! शिवमय हो जाते हैं ! उनके बीच का फर्क मिट जाता है ! आपसी एकता, सहयोग, समानता की भावना मजबूत होती है ! पहचान, जाति, वर्ग सब तिरोहित हो जाते हैं ! हर कांवड़िया एक दूसरे का भाई बन जाता है !



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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

7 टिप्‍पणियां:

  1. शीशा है ज़िंदगी यारो
    जैसी सूरत बनाओगे
    वैसी ही तस्वीर पाओगे
    जीना तो है हर हाल में
    आभार
    प्रभावशाली अंक
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन रचनाओ का समायोजन, सुंदर अंक 🙏 बहुत-बहुत बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
  3. प्यारी सी मुस्कान को लाते इस सुंदर अंक के लिए बधाई व धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत धन्यवाद स्वेता जी मेरी इस छोटी सी रचना को शामिल करने और इसे पाठकों तक पहुंचाने के लिए। मेरे जैसे कभी कभार लिखने वालों के लिए ऐसे मंच और प्रोत्साहित करने वाले पाठक बहुत मायने रखते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी रचनाएं खूबसूरत व अनुपम हैं मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. कुदरत में सब मुस्कुराते है और
    जगत में प्राण की संजीवनी
    प्रवाहित करते हैं। बहुत सही कहा है आपने श्वेता जी, सराहनीय रचनाओं की खबर देता आज का अंक बहुत सुंदर है, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  7. शीशा है ज़िंदगी यारो
    जैसी सूरत बनाओगे
    वैसी ही तस्वीर पाओगे
    जीना तो है हर हाल में
    गम़ रोको हँसी की ढाल में
    सारगर्भित भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति। सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय ।
    मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु सस्नेह आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं

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