निवेदन।


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गुरुवार, 31 जुलाई 2025

4466...फिर कोई बच्चा मेरी ही साँसों में जीवन पाएगा

शीर्षक पंक्ति:आदरणीय हरीश कुमार जी की रचना से।

सादर अभिवादन।



आज कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती है, 'पाँच लिंकों का आनन्द' परिवार उनकी स्मृति को शत-शत नमन करता है. मुंशी जी अपने कालजयी सृजन के ज़रिये समाज को दिशा दिखा रहे हैं.

गुरुवारीय अंक में पढ़िए चुनिंदा रचनाएँ-

एक शहर की सड़कें...

ठेकेदार अब रोज मंदिर जाता है,

प्रसाद चढ़ाकर दुआ मांगता है,

पेमेंट होने तक सड़क की सलामती की।

आखिर अगले ही दिन,

सड़क की सतह पर उभर आईं थीं रोड़ियां।

*****

मृत्यु

और जब आत्मा

नहीं मरती कभी, बस धारण करती है

नया शरीर

मैं भी अपनी चेतना के साथ

धारण कर रहा हूँ नया शरीर

लौटा कर तुम्हारा दिया सब कुछ !

*****

मुक्तक

ग़मों को उठा कर चला कारवां है।

बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।

जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के

दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।

*****

मैं पंचतत्व हूँ.......

फिर कोई बच्चा मेरी ही साँसों में जीवन पाएगा

मेरी परछाई बनके ही शायद वो भी मुस्कुराएगा

वो खेलेगा उन्हीं गलियों में जहाँ बचपन मेरा पला

पर न जाने कौन उसे मेरे बारे मे बतायेगा

*****

आत्मकथ्य

मेरे दोनों संग्रहों (जगत में मेला और चौबारे पर एकालाप) से चुनी हुई कविताओं का संग्रह 'चयनित कविताएं' न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से 2024 में समकाल की आवाज़ श्रृंखला के तहत प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में इक्यावन कविताएं हैं। मेरे बड़े भाई तेज कुमार सेठी ने उन सभी कविताओं का पहाड़ी उर्फ हिमाचली पहाड़ी उर्फ कांगड़ी में अनुवाद कर दिया।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


बुधवार, 30 जुलाई 2025

4465.. सब यथावत रहेगा..

 बुधवारिय प्रस्तुतिकरण में शामिल रचनाए 


मृत्यु

 सब यथावत रहेगा

चिड़िया कुहू कुहू करेगी

सूरज अपनी किरणे लेकर आएगा

कनेर पर खिलेंगे पीले फूल

और उड़हुल खिलेगा लाल लाल..

✨️

मगर आज गांधी खुद अपनी ही लकड़ी लेकर भी खड़ा हो नहीं पाता है


लिखने में खुद के भगवान फूंकता है

और वो पसर भी जाता है

कोई ढूंढे मशाल ले कर के इंसान

मगर दूर तक नजर नहीं आता है..

✨️

सत्तर साल से उठाता रहा सूखे पत्तों का ढेर,

कहीं कोई सुख जीवाश्म मिल जाए देर सबेर,

अंतिम चाह का क्या कीजै निब टूटने के बाद,

तक़दीर के आगे नहीं चलता कोई भी हेर फेर,

एक अदद हमदर्द की तलाश करते रहे ताउम्र,

एक से छूटे कहीं तो हज़ार वेदनाएं लेते हैं घेर,..

✨️

विकास का रथ – लघुकथा

नव निर्मित पुल का उदघाटन करके मंत्री जी अभी-अभी मंच पर आए थे ! पीछे-पीछे पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों का हुजूम था ! उनके पीछे आम जनता की बड़ी..

✨️

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️

मंगलवार, 29 जुलाई 2025

4464...किसने लिखनी है कलियुग में रामायण



मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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चुपचाप रहकर

अपने मंतव्यों के पतंग

कल्पनाओं के आसमान में ही

उड़ाना सुरक्षित है,

मनोनुकूल परिस्थितियाँ

बताने वाली

समयानुकूल घड़ियाँ

प्रचलन में हैं आजकल,

चुप्पियों की मुर्दा कलाईयों में

बँधी सूईयों की टिक-टिक

ईनाम है 

निर्वासित आत्मा की 

समझदार देह को।

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#श्वेता सिन्हा



आज की रचनाएँ

परदे के पीछे खेल रहे खुद धागे
कठपुतली के व्यभिचारों का क्या होगा
किसने लिखनी है कलियुग में रामायण
धनुष यज्ञ के किरदारों का क्या होगा
छोटे छोटे कतरे लेखक के गोलक के
फूटी किस्मत के दरबारों का क्या होगा




बखरी हुई
उदास ग़ुम हुई
दालानों की हँसी-ठिठोली,
रंगोली के
रंग कृत्रिम हैं
पान बेचता कहाँ तमोली,
कहाँ गए
वो हँसने वाले
याद करो उनको फिर रो लो.



कुछ चाहिए मुझसे तो
वह भी तुम अब कह ही दो…
क्योंकि 
कल का क्या भरोसा
रहूँ ना रहूँ 
ये नाव किस पल घाट छोड़ दे
कौन जाने….



उसी के एक अंश 
उसके  प्रिय और शक्ति से भरे  
बन सकते हो, जो चाहो 
रास्ता खुला है, 
जिस पर चला जा सकता है 
 ऊपर से बहती शांति की धारा को 
धारण करना है 
जिसकी किरणें छू रही हैं
 मन का पोर-पोर 




भारतीय मानस में ऋतुएँ केवल मौसम नहीं, जीवन के प्रतीक रही हैं। वसंत प्रेम का, ग्रीष्म तपस्या का और सावन प्रतीक्षा का महीना बनकर आता है। सावन में अक्सर प्रेयसी अकेली होती है, प्रियतम किसी दूर देश गया होता है, और प्रतीक्षा के बीच में विरह का काव्य जन्म लेता है। इसलिए साहित्य में सावन का आगमन केवल प्राकृतिक नहीं, आत्मिक घटना है।




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आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

सोमवार, 28 जुलाई 2025

4463 ..सुरंगों से हो कर गुज़रती है रात, सीने में फड़फड़ाते हैं इतिहास के पृष्ठ

 सादर अभिवादन

रविवार, 27 जुलाई 2025

4462 ... राजकुमार मान-अपमान, अच्छा-बुरा ऊंच-नीच का ज्ञान नहीं रखेगा, वह अच्छा राजा कैसे बनेगा

 सादर अभिवादन

एक गीत सुनिए
काफी से अधिक पुराना है
तुम गगन के चंद्रमा मैं धरा की धूल हूं
और भी है... क्रमशः आएगी ही




एक व्यक्ति—जो वर्षों तक मंदिर प्रशासन से जुड़ा सफाईकर्मी रहा—अब सामने आया है। उसने कहा है कि उसे बलात्कार के बाद मारी गई बच्चियों और महिलाओं के शव जलाने और दफनाने पर मजबूर किया गया।





शिखिध्वज ने एक साधारण सा कपड़ा पहन रखा था। उसके सिर पर एक गठरी रखी हुई थी। अपने पुत्र का यह हाल देखकर राजा कुशध्वज हैरान रह गया।

उसने संत से कहा कि मैंने आपको अपना पुत्र भिखारी बनाने के लिए नहीं सौंपा था। संत ने देखा कि उसके शिष्य ने राजा को अभिवादन नहीं किया है, तो उसने एक छड़ी उसके पीठ पर जड़ दी। राजकुमार चीख उठा। संत ने कहा कि जो राजकुमार मान-अपमान, अच्छा-बुरा ऊंच-नीच का ज्ञान नहीं रखेगा, वह अच्छा राजा कैसे बनेगा। यह सुनकर कुशध्वज चुप रह गए। बाद में शिखिध्वज महान राजा हुआ।



इतनी बड़ी कि वह
पहले अपने हक़ का खाता है
फिर दूसरों के हक़ का
फिर भी भूख नहीं मिटती तो
इंसान इंसान को खाता है




गूँज किसी निर्दोष हँसी की
याद बनी इक  दिल में बसती,
कभी भिगोती आँखें बरबस
कभी हृदय को भी नम करती

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आज बस
सादर वंदन

शनिवार, 26 जुलाई 2025

4461 ...सावन की है हलचल मन मेरा डोले

 सादर अभिवादन


गीतिका छन्द


ऐ बसन्ती पात पीले, हाथ पीले मैं चली,
बिछ गई रौनक सजीली, है छबीली हर कली ।

आम पर नव बौर आई, ठौर पाई रीत की,
रात कोयल गुनगुनाई, राग डोली प्रीत की ।

आ गए राजा बसन्ती, क्या छटा रस रूप की
मैं निराली संग हो ली, चिर सुहागिन भूप की ।

नाम मेरा सरस सरसों, बरस बीते मैं खिली,
देख निज राजा बसन्ती, पुलकती फूली फली ।

अब हवा में छैल भरती, गैल भरती नेह की,
ज्यों बढ़ाती धूप नन्दा, नव सुगन्धा देह की ।

रात भर चलती बयारें, टोह मारे बाज सी,
प्राण सेतू बह्म सींचें, आँख मींचे लाज सी ।

देस धानी प्रीत घोले, मीत बोले नैन में,
तन गुजरियाँ राह चलतीं, ढार मटकी चैन में ।

त्योंरियाँ छैला गुलाबी, यों चढ़ाता मान से,
धार से काँकर बजाता, मोह लेता गान से ।

और भी है... वो भी आएगा पर शैनेः शैनेः




सावन के महीने में आने वाली हरियाली तीज इस बार 27 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी. इस दिन महिलाएं और कुंवारी लड़कियां निर्जला व्रत रख कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करेंगी. इस व्रत को रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन पर माता पार्वती भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती है.

       द्रिक पंचांग के अनुसार, हर साल सावन माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का व्रत रखा जाता है। साल 2025 में 26 जुलाई को देर रात 10:41 मिनट से लेकर 27 जुलाई को देर रात 10:41 मिनट तक शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर 27 जुलाई 2025, वार रविवार को हरियाली तीज का व्रत रखा जाएगा।






नजदीकियों को
कर दिया दूर
बढ़ा दिया
दूर वाला प्यार
मोबाईल फोन ने
इतना किया उपकार






छोड़ गए पितृ सभी, जीवन भर की फंचियाँ,
उनकी फंचियों पर कब तक बसर किया जाय।


​हँसते मुस्कुराते जो वक़्त कट रहा अच्छा है,
बेवक़्त का रोना, किसी के लिए क्यों रोया जाय






यह पुस्तक मुख्य रूप से शासन से जुड़े किरदारों, समाजशास्त्रियों और सबसे जरूरी आज के युवा वर्ग के लिए पठनीय और संग्रहणीय भी है। सोचने और समझने का भाव जगाने वाली इस पुस्तक के लिए शिवदयाल जी को हार्दिक बधाई !!!





सावन की है हलचल
मन मेरा डोले
ढूँढे तुझको हर पल।





वर्षा की बूंदें
धरा में गिरते ही
अपना अस्तित्व
बदल देती है।

बूंदें अर्पित करती है
अपना अस्तित्व


आज बस
सादर वंदन

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

4460...हरी बूँद सावन के अंधे को ललचाती है

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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मानवता की सीख बचपन से ही
कंठस्थ करवाया जाता है
जब घर के बड़े समझाते हैं
"सबसे प्यार करो"
"पशुओं पर दया करो"
"भूखे को खाना खिलाओ"
"प्यासे को पानी पिलाओ"
"किसी को अपने फायदे के लिए मत सताओ"
और भी न जाने कितनी अनगिनत बातें होगी
जो हम सभी समझते और जानते हैं।
फिर भी समाज में अमानवीयता और बर्बरता 
की बहुलता,असंतुलन
क्या हमारी जड़ोंं के
खोखलेपन का संकेत है?
या फिर,
मानवता और दानवता के 
दो पाटों में पीसते मनुष्य मन
की कहानी
सृष्टि के विधान के अनुसार? 
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आज की रचनाएँ -


वो भी हरा दिखाता है
हरे भरे से सबको भरमाता है 
कौन देखता है उसको कौन सोचता है उसको
उसके हरे के भरे से मन भरता है भरता  जाता है

मन भरता जाता है
इतना भरता  है कि बहने लगता है हरा हरा 
भरे की बाढ़ आ जाती है 
हरे की पांचों अगुलियां घी में होती हैं 
कढ़ाई लबालब लेती है सारा हरा तुम्हारा चूस



एक व्यक्तित्त्व
उम्मीदों के बिना भी 
जीते जाने के लिए
दुनिया के ज़ख़्मों पर 
नेह का लेप लगाने के लिए
यह सहज साँचा 
हमने अब खो दिया है 



जब बिन विषधर के ज़ुबां उगलने लगे ज़हर
शब्द जब बन जाएँ तीर, और ढाल रहे बेअसर
फिर क्यों न टूटे कोई, जैसे पतझड़ में पत्ता
जब जिस्म बेच फिर भी चूल्हा न जले घर का अगर




पास हो कर भी,
नहीं हैं पिता,
तुम्हें पीट-पीट कर उतारती,
माँ अपनी खिन्नता।
तुम्हारी दिव्यांगता,
जिसे कोई नहीं  स्वीकारता।
घर में मिली उपेक्षा,
तुम्हारे जीवन की परीक्षा।

होती हूं मैं भी आहत,
देख तुम्हारे कोमल मन की छटपटाहट।
काश तुम्हारा भाग्य बदल पाती,
संसार की सारी खुशियां,
तुम्हारे जीवन में भर पाती।




वो

अपना
फ़र्ज़
निभा गया, हम अपना परिचय पत्र
ढूंढते रह गए, बड़ी ख़ूबसूरती
से हमें प्रतिध्वनि विहीन
आवाज़ कर गया,
एक सरसरी
नज़र से
उसने




आसामी-गुजराती-मराठी 
क्षेत्रीय भाषा सबको नही आती 
फिर भी रहते मिलकर साथी 
नहीं उठाते भाषा पर लाठी ।
एक ही धरती एक ही आह्वान 
था रूदन-क्रंदन एक समान 
देश हित पर बलिदान हुये थे
उत्सर्ग सबने प्राण किये थे ।

 

लौहपुरुष के छात्र जीवन की एक घटना बताई जाती है। कहा जाता है कि वह अपने स्कूल पैदल ही जाते थे। उनके साथ आसपास के अन्य छात्र भी रहते थे। एक दिन जब छात्रों का यह गुट स्कूल जा रहा था, तो उनके साथियों ने पाया कि उनका साथी वल्लभ बहुत पीछे रह गया है। वह लोग रुक गए। थोड़ी देर बाद जब वल्लभ भाई आए तो उनके साथियों ने पूछा कि तुम कहां रुक गए थे। स्कूल के लिए काफी देर हो रही है। तब वल्लभ भाई ने जवाब दिया कि रास्ते में एक पत्थर गड़ा हुआ था जिससे लोगों को आते-जाते समय चोट लग सकती थी। 

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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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