शीर्षक पंक्ति:आदरणीय हरीश कुमार जी
की रचना से।
सादर अभिवादन।
आज कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती है, 'पाँच लिंकों का आनन्द' परिवार उनकी स्मृति को शत-शत नमन करता है. मुंशी जी अपने कालजयी सृजन के ज़रिये समाज को दिशा दिखा रहे हैं.
गुरुवारीय अंक में पढ़िए चुनिंदा रचनाएँ-
ठेकेदार अब रोज मंदिर जाता है,
प्रसाद
चढ़ाकर दुआ मांगता है,
पेमेंट
होने तक सड़क की सलामती की।
आखिर
अगले ही दिन,
सड़क की
सतह पर उभर आईं थीं रोड़ियां।
*****
और जब आत्मा
नहीं मरती कभी, बस
धारण करती है
नया शरीर
मैं भी अपनी चेतना के साथ
धारण कर रहा हूँ नया शरीर
लौटा कर तुम्हारा दिया सब कुछ !
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ग़मों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
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फिर कोई बच्चा मेरी ही साँसों में जीवन पाएगा
मेरी परछाई बनके ही शायद वो भी मुस्कुराएगा
वो खेलेगा उन्हीं गलियों में जहाँ बचपन मेरा पला
पर न जाने कौन उसे मेरे बारे मे बतायेगा
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मेरे दोनों
संग्रहों (जगत में मेला और चौबारे पर एकालाप) से चुनी हुई कविताओं का संग्रह 'चयनित कविताएं'
न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन से 2024 में समकाल की आवाज़
श्रृंखला के तहत प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में इक्यावन कविताएं हैं। मेरे बड़े भाई
तेज कुमार सेठी ने उन सभी कविताओं का पहाड़ी उर्फ हिमाचली पहाड़ी उर्फ कांगड़ी में
अनुवाद कर दिया।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह
यादव


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