सादर नमस्कार
कार्तिक मास विदा हो गया
मास अगहन शुरू
आज के बाद आधे फागुन तक
लक्कड़-पत्थर हजम वाली ऋतु आ गई
यानी जठराग्नि तीव्र रहती है
स्वास्थ्य लाभ लेने का मौसम
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वक़्त को बरतने की तरतीब पिछले कुछ सालों में कितनी तेज़ी से बदली है। हमारे पास एक ज़माने में कितना सब्र होता था। कितनी फ़ुरसत होती थी। हम लंबी चिट्ठियाँ लिखते थे और उससे भी लंबा इंतज़ार करते थे। हमें वक़्त के इनफिनिट होने का भरोसा होता था। मुहब्बत करने वाले लोग अगले जन्म तक का इंतज़ार करने का माद्दा रखते थे।
खाते-खेलते,पड़ते बीमार,मगर
फिर भी हमेशा रहते थे बेफ़िकर ।
डाँट-फटकार, तकरार सब भूल
माँ की गोद में सोते बेसुध होकर ।
हो तेरी ही अभिलाषा पूरी
रूठे मनाने की कहाँ अब
जरा भी हिम्मत है बाकी
सच कहूँ तो अब बस
गठरी बाँधने की तैयारी है
अब सफर ही कितना बाकी है
हवा शूल बन जड़ा रही है।
कँपना पल-पल बढ़ा रही है॥
करना क्या है सोच रहे हम?
आता कोहरा देख रहे हम॥
पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी नूनगर लोगों का मानना था कि काले हंस कभी सफेद थे, लेकिन उनके घमंड के कारण चील ने उनके सफेद पंख नोच लिए थे। वैसे तो नॉर्वेजियन पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सभी हंस सफेद होते हैं, क्योंकि उनके पूर्वज असगार्ड के एक पवित्र कुएं से पानी पीते थे, जो इतना शुद्ध था कि उससे पानी पीने वाला हर व्यक्ति सफेद हो जाता था।
बस
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