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गुरुवार, 7 नवंबर 2024

4300...बच गए गर डूबने से, मध्य सागर में खड़े...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया जिज्ञासा सिंह जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

उत्तर पूर्वी भारत का महत्वपूर्ण चार दिवसीय पर्व है छठ। 

छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ!

दौज का टीका

शीतल करे

अन्तर की तपन

चन्द्र सामान

 

रोली अक्षत

सजे भाल पर ज्यों

सूरज चाँद

*****

ज्योति की स्थापना में

बच गए गर डूबने से,

मध्य सागर में खड़े।

तारिकाएँ तोड़ लीं जो,

आसमाँ से, बिन उड़े॥

समर्पण-सदभाव-श्रद्धा,

डूब जाना भावना में।

ज्योति की अभ्यर्चना में॥

*****

ग़ज़ल -हिरन की प्यास

किताबें संत भी गढ़ती हैं, नक्सल भी बनाती हैं

मगर गीता हमारी सोच को विस्तार देती है

नदी, पर्वत, चहकते वन, कहीं फूलों की घाटी है

प्रकृति धरती को कितने रंग का श्रृंगार देती है

*****

रंग रोगन

रंग-रोगन 

आंखों के काले घेरे 

छुप न सके

*****

गुलाबी सूरज

आज सुबह-सुबह ही शीशे का एक जग टूट गया, लापरवाही से या कहें मोबाइल के चक्कर में। कमरे में अँधेरा था और मोबाइल चार्जर में लगा था, निकालने लगी तो कोहनी जग को लगी। ध्यान पूरा मोबाइल पर था, आसपास की वस्तु पर ध्यान ही नहीं दिया, दुख जग टूटने का जरा भी नहीं हुआ पर अपनी इस असजगता का अवश्य हुआ।आज राम की जीवनी को लेकर एक रचना लिखी सीधी कंप्यूटर स्क्रीन पर और पोस्ट की।आज दोपहर को वे लोग भोजन कर रहे थे, बिना घंटी बजाए नये पड़ोसी सीधे अंदर आये और होमऑटोमेशन के बारे में पूछने लगे।शाम को इलेक्ट्रीशियन को लेकर आयेंगे। 

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव


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