।।प्रातःवंदन।।
"ओ आस्था के अरुण!
हाँक ला
उस ज्वलन्त के घोड़े।
खूँद डालने दे
तीखी आलोक-कशा के तले तिलमिलाते पैरों को
नभ का कच्चा आंगन!
बढ़ आ, जयी!
सम्भाल चक्रमण्डल यह अपना.."
अज्ञेय
सूर्य उपासना का सामाजिक महोत्सव छठ, पर्यावरण संरक्षण के साथ संस्कृति को जोड़,निरंतर कर्मरत का संदेश दे रहा।चलिए इसी को मद्देनजर रखतें हुए नज़र डालें आज की प्रस्तुति पर..
छठ के बहाने गुलजार हुए बिहार के गांव पर्व के बाद फिर होंगे खाली, कब रुकेगा ये पलायन?
प्रवासियों के लिए भीड़ एक संज्ञा है! प्रवासियों का दर्द त्यौहारों में और बढ़ जाता है, वे भीड़ बन निकल पड़ते हैं अपनी माटी की ओर, जहां से उन्हें हफ्ते भर बाद लौट जाना होता है, फिर से भीड़ बनकर! बिहार का दर्द पलायन है, एक ऐसा दर्द जिसके नाम पर बिहार की राजनीति होती है.
✨️
दीप जलता रहे
हमारे चारों ओर के
इस घने अंधेरे में
समय थोड़ा ही हो
भले उजेला होने में
विश्वास आत्म का
आत्म पर यूं ही बना रहे
✨️
बनने की होड़ में
सर्वनाश पर तुले हैं
सब कुछ मिटा कर,
हम किसको दिखाएंगे अपने वर्चस्व?
✨️
कितना मुश्किल होता है
किसी को न बोल पाना
हम कितना जोड़ रहे हैं
घटाव में।
बेकार मान लिया जाता है
आदतन
अपने समय में ..
✨️
जिन्दगी में क्या है,कुछ ख्वाब कुछ उम्मीदें
अगर इनसे खेल सको तो कुछ पल खेलो।।
रिश्ते लिबास बन गए आज की दुनियां में
हर चेहरे पर नकाब है देख सको तो देखो।।
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
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