सादर नमस्कार
गुरु पूर्णिमा है आज सिखों के प्रथम (आदि ) गुरु नानक देव जी का 555 वाँ जन्म दिन है
नानक (कार्तिक पूर्णिमा 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि ) गुरु हैं. इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानक शाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म स्थान गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान में और समाधि स्थल करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है।
अपने दैवीय वचनों से उन्होंने उपदेश दिया कि केवल अद्वितीय परमात्मा की ही पूजा होनी चाहिये। कोई भी धर्म जो अपने मूल्यों की रक्षा नहीं करता वह अपने निम्न स्तर के विकास को दर्शाता है और आने वाले समय में अपना अस्तित्व खो देता है । उनके संदेश का मुख्य तत्व इस प्रकार था – ईश्वर एक है, ईश्वर ही प्रेम है, ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य समान हैं । वे सब एक ही प्रकार जन्म लेते हैं और एक ही प्रकार अंतकाल को भी प्राप्त होते हैं। ईश्वर भक्ति प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उसमें जाति- पंथ ,रंगभेद की कोई भावना नहीं है। 40वें वर्ष में ही उन्हें सतगुरु के रूप में मान्यता मिल गयी। उनके अनुयायी सिख कहलाये। उनके उपदेशों के संकलन को जपजी साहिब कहा जाता है। प्रसिद्ध गुरू ग्रंथ साहिब में भी उनके उपदेश और संदेश हैं। सभी भारतीय उन्हें पूज्य मानते हैं और भक्ति भाव से इनकी पूजा करते हैं।
उनको शत शत नमन
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आज भी तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग यह मानता है, कि धनतेरस-दीपावली के दौरान उल्लू दिख जाने से सालों भर घर में लक्ष्मी आतीं हैं और दूसरा वर्ग वह .. जो तथाकथित रूप से नास्तिक या फिर अल्पज्ञानी कहलाता है, वह इस मान्यता को एक सिरे से नकार देता है। उसी प्रकार तथाकथित धनतेरस के दिन अपनी हैसियत के अनुसार एक वर्ग कुछ धातु , सोना-चाँदी व उससे बने गहनों से लेकर एल्युमीनियम-स्टील तक के बर्त्तन या साईकिल से लेकर कार तक , की खरीदारी करने से अपने-अपने घर में सालों भर तथाकथित लक्ष्मी आगमन की बात मानता है ; तो वहीं दूसरा वर्ग धनतेरस के अवसर पर तथाकथित भगवान धन्वंतरि को स्वास्थ्य व औषधि- अमृत का देवता मान कर उनकी पूजा करता है।
अवसान के निशान
Wow, super, Happy Guru parb
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