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गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

524...मिलने वाला है नए साल का तोहफा फिर से,


जय मां हाटेशवरी...

मात्र 10 दिन बाद...
दिसंबर का अंत....
जनवरी का प्रारंभ होगा...
केवल कड़ाके की ठंड है...
हर तरफ पतझड़ है...
फिर नया क्या है....
जिसे सब नव वर्ष कहते हैं....
...जब भारत का अपना नव वर्ष होता है....
.....तब ये पटाखे...
....ये नाच-गाना...
....क्यों नहीं सुनाई देता....
किसी ने सत्य ही कहा है...
हम आजाद देश के गुलाम निवासी है...

मिलने वाला है नए साल का तोहफा फिर से,
लोग कहते हैं कि हाज़िर है तमाशा फिर से।
पैरहन जिसने दिखावे के सिला रक्खे हैं ,
ओढ़ लेगा वो शराफ़त का लबादा फिर से।


अनजानी इबारत
उसपर भी रोजाना
तारीफ पाया करती थी
उससे जो प्रसन्नता होती
आज तक न मिली
तब कलम नहीं छूटती थी
अब कोई वेरी गुड
 देने वाला नहीं मिला |

निश्चिंता (ऐसा भी होता है)
लेकिन सरकारी नौकरी में बहुत आसान कहाँ होता किसी को किसी को देख लेना। भ्रष्ट व्यक्ति के वश में और कुछ नहीं होता ,रवि ये बात जानता था । अपने पति की ईमानदारी
की चमक से रौशन होता नव वर्ष का सूरज और चमकीला नजर आया ज्योत्स्ना को ।

राम कहानी-2
ख्वाब हो गया अपनापन
तनहा उम्र नसानी लिख
तेरे बिन भी जिन्दा हैं
इतनी सी बेइमानी लिख
मगर जिंदगी चुप सी है
बिना खिले कुम्हलानी लिख

कहीं इमरोज न बन जाऊं
और प्यार भरी नजरों से ताकते हुए कह भर दे
वही घिसे पिटे तीन शब्द
आई लव यू !
बदलती उम्र का तक़ाज़ा
या देर से उछला प्रेम स्पंदन
या यूँ कह लो
प्रेम भरी साहित्यिक कविताओं का
नामालूम असर
कहीं अन्दर से आई एक आवाज
चिंहुका प्रेम उद्वेग
हो मेरे लिए भी कोई अमृता -
जो मेरे पीठ पर नाख़ून से
खुरच कर लिख सके
किसी साहिर का नाम!

दिसंबर
*दिसंबर* ठिठुरती हुई रात,
समर्पित तुम्हे हर जज़्बात।
दिन महीना और साल बीता,
आखिर में जाकर प्यार जीता।
होंगे न जुदा किसी हाल में
ये वादा करें नए साल में।

इस मंदिर के बारे में सुनकर रह जायेंगे हैरान
बताया जाता है कि यह मंदिर करीब ढाई सौ साल पहले बाबरा नाम के एक भूत ने किया था, जिसे उसने मात्र एक रात में बनाकर खड़ा किया था। यह नवलखा मंदिर सोमनाथ के ज्योतिलिंग
के समान ही बहुत ऊंचा है, जिसे जीर्णोद्धार करके ठीक किया गया है। यह मंदिर एक भूत द्वारा भले ही बनाया गया है, पर इसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। इस मंदिर
के चारों ओर  नग्न-अद्र्धनग्न नवलाख मूर्तियों के शिल्प हैं, जिसे 16 कोने वाली नींव के आधार पर निर्मित किया गया है।

रोला छंद
हरे हुए हर पात, दूब की बात निराली
झूल रही है ओस, पवन बनती मतवाली
हौले हौले सूर्य, गरम होता जाता है
शिशिर शरद के बाद, ग्रीष्म ही मन भाता है

आज बस इतना ही...
फिर मिलेंगे...
शुभ विदा....




















6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...
    अच्छी रचनाओं का चयन किया है आपने
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा पसंद लिंक्स कि |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार कुलदीप जी |

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा लिंक्स के हलचलों के बीच मेरे लिक्स सुखद पल देते हैं .... बहुत बहुत धन्यवाद आपका

    जवाब देंहटाएं

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