जय मां हाटेशवरी...
क्या खूब लिखा है....
तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो
तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आग़ाज़ बदल डालो
पुर-सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो
दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो
ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
अगर चाहते हो मंज़िल तो परवाज़ बदल डालो...अल्लामा इकबाल
अब पेश है आज की प्रस्तुति...
दोहे
बड़े बड़े हैं नोट सब, गायब छोटे नोट
चिंतित है सब नेतृ गण, खोना होगा वोट |
नोटों पर जो लेटकर, लुत्फ़ भोगा अपार
नागवार सबको लगा, शासन का औजार |
जन गण मन' का 'अधिनायक' कौन है?
यह कैसी रचना है, प्रांतों के जिक्र होते-होते समुदाय में घुस गए कवि ! रचना का ऐसा विग्रह अज़ीब है ! रचना में 'हिमाचल' अगर हिमालय है, तो 'जलधि' व महासागर में Indian Ocean (हिन्द महासागर) का नाम का उल्लेख नहीं है । खैर, इसे मान भी ले तो रचना में 'तव' , 'गाहे', 'जय हे' जैसे- शब्द या शब्द-विन्यास हिंदी के नहीं हैं । कुलमिलाकर यह रचना हिंदी भाषा लिए नहीं हैं ।
एक तरफ हम 'गीता' को आदर्श मानते हैं । कर्म को सबका गूढ़ मानते हैं , दूसरी तरफ उक्त रचना में 'भाग्य' शब्द को क्या कहा जाय ? 'विधाता' 'अधिनायक' के सापेक्ष है, तो इसका मतलब 'ईश्वर' नहीं, अपितु 'डिक्टेटर' से है । 'जन गण मन' की बात सोचा जाना, 'भारत-भाग्य-विधाता ' और 'अधिनायक' से परे की बात है , विविधा भाषा भी मिश्री घोलता है ! बावजूद 'राष्ट्रगान' के प्रति पूर्ण आस्था है और 52 सेकंड में समाये उनकी धुन तो देश के प्रति जोश में भर देता है । इसके बावजूद इनकी रचनाकार जो हो... 'ठाकुर' या 'टैगोर' या कोई ?
दादी जी
बात करे घर पहुँचने को लेकर सभी लोग पिताजी, अम्मी, दीदी, भाई सब के सब बिना रोये अपना सभी काम सामान्य रूप से कर रहे थे। जब मैं पहुँचा शाम को तो दादी जी को लेटे हुए रजाई में देखा...अब तो मैं भी असामान्य से सामान्य हो चुका था।
पता नहीं क्यों लगा ही नहीं दादी जी नहीं रही। शायद वो थी तो भी हंसाती थी और नहीं है तो भी हंसाती है। रुलाया भी तो उनकी यादों ने कभी कभार...पर अहसास नहीं
होने दिया कि अब वो हमारे बीच नहीं है इसलिए आज के दिन के दादी जी के स्वर्गवास का दिन भी याद नहीं रहा । लौटते हुए दीदी का फेसबुक पोस्ट पढ़कर लगा कि हाँ शायद सही कह रही होंगी। दोस्त से कहाँ कि दादी जी के बारे में लिखा गया है....मुझे तो याद ही नहीं रहा कि आज के ही दिनाँक 10 दिसंबर, 2015 को वो अलविदा कह गयी। शायद ऐसा इसलिए ही हुआ क्योंकि दादी जी हर पल साथ दिखती है....
महके न धरती तब बरसात कराओ न
चिड़ियां चहके, चमके तारे झिलमिल ये संसार रहे
सूनी हो बगिया तो कोयल कोई आओ न
सोते हुए गहन निद्रा से सुबह सुबह जगाओ न....
सूना सूना संसार हुआ है, अंधा तो प्यार हुआ है
मतलबी इंसान हुआ है, रिश्तों में व्यापार हुआ है
लोरी न माँ की तो तुम, अब आकर गले लगाओ न
तपते देह का आंसू लेकर पोखरा नया बनाओ न
महके न धरती तब बरसात कराओ न.....
सर्दी का मौसम: जानें ठंड और जुकाम से बचने के आसान और घरेलू उपाय!
बेशक आपको अभी भी गर्मी का एहसास हो रहा है, मगर मौसम की मौजूदा स्थिति सेहत के लिए ठीक नहीं है। चूंकि हम इन बदलावों के लिए तैयार नहीं रहते, इसलिए बदलता मौसम
हमारे ऊपर असर कर जाता है। मौसम का यही असर सर्दी-जुकाम, न्यूमोनिया, टाइफाइड, और वायरल फीवर के रूप में नजर आता है। सबसे ज्यादा परेशानी अस्थमा, डायबिटीज,
हाई बीपी अथवा दिल के मरीजों को होती है। इसलिए बदलते मौसम के ढंग को समझते हुए जरूरी है थोड़ी सावधानी।
विश्वास का खंज़र… ( Vishwaas Ka Khanzar)
किसी के पास दिल होने का ये मतलब नही की वो दिलदार भी होगा,
क्या पता उसके मीठे बोल की चाशनी में कौनसा ज़हर घुला होगा।
दूरी बनाकर रखिये ऐसे लोगों से,
क्या पता कब आपकी पीठ पर खंज़र घुसा होगा।।
आज की प्रस्तुति में...इन रचनाकारों की रचनाओं को स्थान मिला...
आदरणीय कालीपद "प्रसाद"आदरणीय सदानंद पॉलआदरणीय प्रभातआदरणीय कृष्णेन्द्र प्रताप सिंहआदरणीय मयंक भट्ट
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चयन
साधुवाद
सादर
उम्दा प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi jankari
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