सादर अभिवादन..
अब दिन कितना बचा
फटाके फूटेंगे
नाच -गाना होगा
नया साल मुबारक कह कर
प्रतीक्षा करेंगे वर्ष
अट्ठारहवें का...
आज की पसंदीदा रचनाओं के कुछ अंश....
भ्रष्ट और आचार
इन दो शब्दों का मेल,
चारों ओर फैला है
इसी मेल का खेल।
जिन गीतों का सच मर चुका है
तुम क्यूँ उन्हें गाए जा रहे हो
भावनाओं का मेल है ये जीवन
भावनाओं से भागे जा रहे हो
मैंने सहेजकर दिया
वो उजले धागे वाला मेजपोश
जिसमें बुनी थी , सुलझाई थी
गर्भ में तुम्हारी अनुभूति की पहेलियाँ
'आस-पास ही देख रहा हूँ मिटटी का व्यापार ,
चुटकी भर मिटटी की कीमत जहाँ करोड़ हज़ार ,
और सोचता हूँ आगे तो होता हूँ हैरान
बिका हुआ है कुछ मिटटी के ही हाथों इंसान .''
भाग्य हमेशा साहसी इंसान का साथ देता है...कविता रावत
बिना साहस कोई ऊँचा पद प्राप्त नहीं कर पाता है।
निराश होने पर कायर में भी साहस आ जाता है।।
मुर्गा अपने दड़बे पर बड़ा दिलेर होता है।
कुत्ता अपनी गली में शेर बन जाता है।।
मन इतना बेचैन तू क्यों है?
इस दुनिया में खोया क्यों है?
आंखों में तू ख्वाब सजा कर
दिल में लेकर बैठा क्यों है?
आज का शीर्षक..
उसके भी समझ में
आते आते ये भी
मालूम नहीं चल पाया
दिमाग कब अपनी
जगह को छोड़ कर
कहीं किसी और जगह
ठौर ठिकाना ढूँढने
को निकल गया फिर
लौट कर भी नहीं आ पाया
आज्ञा दें दिग्विजय को..
सादर
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभारी रहूँगी सदा
साथ देते रहिएगा
सादर
सुन्दर सूत्रों के साथ आज की सुन्दर हलचल में 'उलूक' की एक पुरानी बकबक 'आती ठंड के साथ सिकुड़ती सोच ने सिकुड़न को दूर तक फैलाया पता नहीं चल पाया' को भी स्थान देने के लिये आभार दिग्विजय जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएं