दिसम्बर का सातवाँ दिन
तेईस दिन बाद
धमा-चौकड़ी भरते
सन दो हजार सत्रह का प्रवेश
दूर के ढोल सुहाने.....मालती मिश्रा
वैसे तो मानव के पास
गुणों का खजाना है
पर समय निकल जाने के
उपरांत ही सदा
इसने उनको पहचाना है
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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सुन्दर बुधवारीय हलचल । आभार 'उलूक' का यशोदा जी सूत्र 'जमीन की सोच है फिर क्यों बार बार हवाबाजों में फंस जाता है' को चर्चा में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात सस्नेहाशीष संग छोटी बहना
जवाब देंहटाएंउम्दा चयन
बढ़िया हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंजब तक खुद ज़मींदोज़ नहीं हो जाता, वह सैकड़ों को ज़मींदोज़ कर चुका होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। आभार
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या...
जवाब देंहटाएंसुंदर...
सुन्दर हलचल ... आभार मुझे शामिल करने का ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल...धन्यवाद आपका
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंरूप अरूप जैसी हृदय स्पर्शी रचनाएं प्रस्तुत करने के लिए आभार।
बहुत अच्छी रचनाओं का चयन एवं प्रस्तुति।
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