दो रोज से परेशान थी
उँगलियाँ तवे को छू गई थी
आज ठीक है...
आज की पसंद........
किसी की प्रस्तुति नहीं पर डिज़िटल भारत की शुरुआत
अकेलापन........अनीता
उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक
धरा के इस छोर से उस छोर तक
कोई दस्तक सुनाई नहीं देती
अपना बचपन.......जीतेन्द्र पाराशर
बेचैनी से ढूढ़ रहा था वो
अपना बचपन
अरसे बाद आया अपने गाँव
भाग चला पकड़ने
पीपल को
जो करते करते इन्तजार
मर चुका था
ये लोग पागल हो गए हैं..... नासिर काज़मी
उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहां जो हादिसे कल हो गए हैं,
जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर'
वो लोग आँखों से ओझल हो गए हैं
४० पार..... रेवा टिबड़ेवाल
आईने के सामने खड़े हो
आज खुद से
बात करने की कोशिश करी .......
जब गौर से देखा तो
समझ ही नहीं आया की
ये मैं हूँ !!
आज के शीर्षक में ताजी खबर..
फकीरों
के देश में
खुश
रह कर
हमेशा
की तरह
बैठ कर
पीटता
चला चल
अपनी
लकीर
दर
लकीर ।
इसी के साथ आज्ञा दें यशोदा को
चलते-चलते एक छोटा सा पंच और
बहुत ही अच्छी सभी रचनायें
जवाब देंहटाएंबढ़िया वीडियो सुन्दर प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के सूत्र 'हर तरफ फकीर हैं फकीर ही फकीर' को आज की हलचल शीर्षक देने के लिये यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंबढिया बीडियो और अति सुन्दर रचनाएं
जवाब देंहटाएंबढिया बीडियो और अति सुन्दर रचनाएं
जवाब देंहटाएं