निवेदन।


फ़ॉलोअर

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

510......जिसने धन को सबकुछ माना वो एकदम निर्धन है  साहब


जय मां हाटेशवरी...

काफी दिनों बाद...
एक बार फिर....
मैं कुलदीप ठाकुर उपस्थित हूं...
...आनंद का एक और अंक लेकर...
पेश है मेरी पसंद...

कहीं हैं विश्राम गृह
रुक जाने का भी
 मन होता है
पर मन  असंतुष्ट
कुछ करने नहीं देता
उसकी कातरता देख
 दारुण दुःख होता
यही बड़ी समस्या है

कब तक हम भटका करें नाकारा बेकार
नैया कर दो पार अब जग के पालन हार !
बीत रहा जीवन फिसल ज्यों हाथों से रेत
संभल न जाते हम तभी जो आ जाती चेत !
इससे तो हम सीखते हाथों का कुछ काम
बेकारों’ की लिस्ट से हट तो जाता नाम !

 
ज़माना कभी भी बुरा तो नहीं है 
बुरा आदमी है, सुधरना पडेगा |
गुलों में जो खुशबु है, उसको भी जानो
क्रिया का ही खुशबू, बढ़ाना पडेगा |

ऐसा नहीं है कि सूत्रशैली कोई कृत्रिम तकनीक है। शब्दों की शक्ति अथाह है, एक एक शब्द जीवन बदलने में समर्थ है। इतिहास साक्षी है कि सत्य, अहिंसा, समानता, न्याय,
अपरिग्रह, धर्म आदि कितने ही शब्दों ने समाज, देश और संस्कृतियों की दिशा बदल दी है। पहले उन शब्दों को परिभाषित करना, संस्कृति में उनके अर्थ को पोषित करना,
उन्हें विचारपूर्ण, सिद्धान्तपूर्ण बनाना। कई कालों में और धीरे धीरे शब्द शक्ति ग्रहण करते हैं। उदाहरणस्वरूप योग कहने को तो एक शब्द है पर पूरा जीवन इस एक
शब्द से साधा जा सकता है। सत्य और अहिंसा जैसे दो शब्दों से गांधीजी ने देश के जनमानस की सोच बदल दी। ऐसे ही शब्दों ने राजनैतिक परिवर्तन भी कराये हैं और समाज
की चेतना में ऊर्जा संचारित की है। व्यक्तिगत जीवन में भी सूत्रशैली की उपयोगिता है। बचपन परीक्षा की तैयारी करते समय किसी विषय को पढ़ते समय हम संक्षिप्त रूप
में लिख लेते हैं ताकि परीक्षा के पहले कम समय में उन्हें दोहराया जा सके। यही नहीं, विज्ञान के बड़े बड़े सिद्धान्त भी गणितीय सूत्रों के रूप में व्यक्त किये
जाते हैं।

जिसने जैसा परचा लिक्खा।।
लाखों दस्तक पर भी तेरा
दरवाजा तो बंद रहा।
जाते जाते दर पे तेरे,
अपना नाम पता  लिक्खा।।
यूं रदीफो काफिया, मिसरे
हमें मालूम थे।
तुम न समझोगे कि क्यों
हर शेर को मक्ता लिक्खा??

गृहणी हूं
बीनना मांजना
सीना पिरोना
इतना ही भर आता है..
अच्छा लाओ तुम्हारा मन
उस पर आश्वस्ति के बटन टांक दूं
नेह के धागे में आंके बांके भाव पिरो दूं..
वहां क्षितिज पर
ख़्वाहिशों की हाट लगी है
मोल भाव करुं
सस्ती हो तो
कुछ आंचल में भर लूं..


जिसने धन को सबकुछ माना
वो एकदम निर्धन है  साहब
औरों का दुःख जिसको छूता
वो मन नील गगन है साहब
बाहर उजली उजली बातें
अंदर भरा व्यसन है साहब

ये सुब्ह से शाम तलक आज़माए जाते हैं
क्यूँकि हर तकरीरें से तस्वीरें बदलती नहीं
न हि हर खामोशियों की तकसीम लफ़्जों में होती
रफ़ाकते हैंं इनसे पर चुनूंगी हर तख़य्युल को
जब  खुशी से वस्ल होगी...




आज बस इतना ही...
फिर मिलेंगे.......
रविवार को...
अगर समय पर  नैट ने साथ दिया तो...
पर आनंद का सफर नहीं रुकेगा...

धन्यवाद।

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    फूल -माला चढ़ा दीजिएगा नेट महारानी को
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आनन्द का सफर जारी रहे। सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर हलचल प्रस्तुति..
    मेरी रचना को उचित स्थान देने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन लिंक्स से सजी आज की हलचल ! मेरी प्रस्तुति 'शिक्षा और श्रम' को सम्मिलित करने के लिए हृदय से धन्यवाद कुलदीप जी ! आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद कुलदीप जी |

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...