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मंगलवार, 22 सितंबर 2015

मगज.....जहाँ पर विचार जन्म लेते हैं.........अंक छैंछठ

जेब का वजन 
बढ़ाते हुए
अगर दिल पर 
वजन बढे….
तो समझ लेना
कि सौदा 
घाटे का ही है..!
सादर अभिवादन...

आज्ञा मिल गई
यानि कुछ सुना नहीं

ये रही आज की पंसंदीदा रचनाओं का सिरा


आस्था के नाम पर,
बिकने  लगे हैं भ्रम
कथ्य को विस्तार दो ,
यह आसमां है कम .



इंटरनेट की दुनिया में बहुत सी ऐसी साइट मौजूद है जो सच में बड़े काम की होती है लेकिन अक्सर देखा गया है काम की वेबसाइट बहुत ही काम लोगो को मिल पाती है आज मैंने आपके सामने एक ऐसी ही वेबसाइट लेकर आ रहा हु जो आपके बहुत काम आएगी


देखा कुछ ? 
हाँ देखा 
दिन में 
वैसे भी 
मजबूरी में 
खुली रह जाती 
हैं आँखे 
देखना ही पड़ता है 


अभी अभी पता चला कि आज अपनी बीबी की तारीफ करने का दिन है । 'सोशल मीडिया' पर बहुत 'एक्टिव' रहने में यह भी भय रहता है कि जो काम बाकी लोगों ने कर दिया और आपने नहीं किया या बाद में किया तो लगता है 


यादों के झरोखों से
एक याद अब भी आती है
वो बचपन की अठखेलियां
दोस्तों के साथ की सैकड़ों मस्तियां
मुझे अब भी याद आती है


कुछ अनदेखी तस्वीरें
कब्रों की...


चल रही है
चल रही है
चल रही है जिंदगी

ढल रही है
ढल रही है
ढल रही है जिंदगी


आज चाय में ऐसा क्या पड़ गया 
क्यों क्या हुआ ?
गलती से शायद ! अच्छा बन गया


न मैं तुमसे
मांग रहा हूं
भिक्षा अपने जीवन की
न जीवित तुम्हे 
जाने दूंगा आज
यही है सैनिक धर्म मेरा...


अपने मगज के उस हिस्से को 
काट देने का मन होता है
जहाँ पर विचार जन्म लेते हैं  
और फिर होती है
व्यथा की अनवरत परिक्रमा,  


इज़ाज़त मांगता है दिग्विजय

और सुनिए ये गीत




8 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद दिग्विजय जी, छायाचित्रकार की भूली कब्रों को यह सम्मान देने के लिए :)

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति । आभार दिग्विजय जी 'उलूक' का सूत्र 'देखा कुछ ?' को स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात आदरणीय
    चकित रह जाती हूँ उम्दा लिंकों के बीच खुद के लिखे को पाकर
    आभारी हूँ
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर लिंकों का चयन...
    मुझे स्थान दिया आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं

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