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शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

4288 ...हर सुबह ढूँढता हूँ सपनों की रंगीन तितलियाँ

 सादर नमस्कार

मिली जुली
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तुम ठीक से देख नहीं पाए।
उस दिन वह
भीड़ में अकेली
और
बेड़ियों में आजाद थी।




चोर, दस्यु, तस्कर, व्यभिचारी,
ये चुनाव में, सब पर भारी.
हमारे ऐसे विद्यादान की निरर्थकता -
हम से पढ़, पंडित भया,
बेघर, निर्धन होय,
बिश्नोई लॉरेन्स का,




सुनो साथी !
फूल लाने जा रहे हो न
हतप्रभ मत होना  
पर सुन जरूर लेना
फूल गुलाब के नहीं
सिर्फ हरसिंगार के ही लाना
और चुन - चुन कर लाना !





किसी सुनहरे स्वप्न की
राह तकते सो जाता हूँ
पर जाने क्यूँ रुठी-रुठी है मुझसे
स्वप्नों की परियाँ
बीत जाती है रात उनींदी
और पलकों की खाली डिबिया में
हर सुबह ढूँढता हूँ
सपनों की  रंगीन तितलियाँ

बस

6 टिप्‍पणियां:

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