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मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

4263..रंग होते हैं देखने वाले की आँखों में

मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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ऋतुओं का संधिकाल सृष्टि के अनुशासनबद्ध परिवर्तन चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।

भादो के साँवले बादल, लौटती बारिश की रिमझिम झड़ी क्वार यानि आश्विन की पदचाप की धीमी-सी सुगबुगाहट से हरी धरा की माँग में कास के श्वेत पुष्षों का शृंगार  

अद्भुत स्वार्गिक अनुभूति देती है।

नरम भोर ओर मीठी साँझ के बीच में धान के कच्चे दानों सा दिन।

शारदीय नवरात्र के उत्सव के पूर्व आपने कभी देखा है नौजवान ढाकियों को अपने तासे में कास के फूल खोंसकर तन्मयता से  झूमते हुए? 

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आज की रचनाएँ

रंग


दरअसल रँग होते हैं तो देखने वाले की आँख में
जो जागते हैं प्रेम के एहसास से
जंगली गुलाब की चटख पंखुड़ियों में




सृष्टि की संजीवनी वृष्टि


फूल बोले सहमति में 
सिर हिलाते, खिलखिलाते.. 
हम भीगे और भीज के
कुम्हला भी गए तो क्या ?
भरपूर खिले, बिखेरी छटा
प्यास बुझा कर तृप्त हुए !
अब सूखी मिट्टी भी नम हो,
वर्षा के जल से सिंचित हो,
सघन वृक्षों की जङें सिंचें ।


अवगाहन

प्रणय का प्रतिफलन, बिंदु -
बिंदु जीवन भर का
एक अमूल्य
संकलन,
डूब
कर भी किसी और जगह
एक नई शुरुआत,
बारम्बार जन्म
के पश्चात
भी नहीं
मिलती


सांख्य योग


केशव अर्जुन को कहे, चिंता तेरी व्यर्थ । 
तू अधकचरे ज्ञान से, करने लगा अनर्थ ।।

झलके तेरी बात में, बहुत बड़ा पांडित्य ।
पर मर्म समझता नहीं, है आत्मा तो  नित्य ।। 

इतना ज्यादा सोच मत, मन को थोड़ा रोक।
अर्जुन ! नश्वर देह का, ठीक नहीं है शोक ।। 


देव का दूत


असमंजस में पड़े,
हकबका गए,
सुर असुर यक्ष राक्षस  
हर एक को किया है
अपनी वाणी के वश।
पर मनुष्य पर किसका वश।
इंसानों का पर देवलोक में भी 
रिकॉर्ड बड़ा खराब है 
इंद्र देव के कड़े हैं इंस्ट्रक्शनII,
न मुंह लगें मानवों के,

मति इनकी बर्बाद है।


सब क्या सोचेंगे...


देख मोना ! मुझे गुस्सा मत दिला ! बंद कर ये खेल खिलौने ! और चुपचाप पढ़ने बैठ !  कल तेरी परीक्षा है, कम से कम आज तो मन लगाकर पढ़ ले" !

"वही तो कर रही हूँ मम्मी ! मन बार -बार इसके बारे में सोच रहा था तो सोचा पहले इसे ही तैयार कर लूँ , फिर मन से पढ़ाई करूँगी" ।


 "साहिब" से छेड़छाड़...



विभिन्न स्रोतों में उपलब्ध विवरणों से जो जानकारियों मिलीं, वे साफ करती हैं कि मूल शब्द ''साहिब'' अरबी भाषा का है। जिसका अर्थ है, ईश्वर के समकक्ष या भगवान के साथी। इसीलिए इसे देवतुल्य गुरुओं के साथ जोड़ा गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी एक-दो जगह इस शब्द को श्री राम जी के लिए उपयोग किया है। अन्य धर्मों के धर्म-ग्रंथों में भी इस शब्द का जिक्र पाया जाता है !




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आप सभी का आभार।
आज के लिए इतना ही 
मिलते हैं अगले अंक में।

8 टिप्‍पणियां:

  1. चला जाएगा आज सितंबर
    आया है अक्टूबर, छुट्टियों के संग
    सुंदर अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! नये महीने के प्रथम दिन सुंदर संयोजन

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर अंक
    सांख्य योग को चर्चा में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय

    जवाब देंहटाएं
  4. श्वेता जी, 'अवगाहन' का चित्र बदल दीजिए। नमस्ते।

    जवाब देंहटाएं
  5. श्वेता जी, ढ़ाकियों और धान के कच्चे दानों को ना भी देखा हो, तब भी आपके वर्णन ने यह दृश्य और भाव साकार कर दिया है। अल्पना सरीखी भूमिका ने उत्सव के आगमन की अनुभूति करा दी। आज की सभी रचनाओं का भाव पृथक और संक्षिप्त है। गागर में सागर समाया हो जैसे। सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनंदन ! हम सब 'कलमवीर' ही रहें। 'वाचालवीर' ना बनें ! यही प्रार्थना है। नमस्ते। शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  6. आश्विन की पदचाप की धीमी-सी सुगबुगाहट से हरी धरा की माँग में कास के श्वेत पुष्षों का शृंगार
    सचमुच अल्पना सी मनोरम भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति । सभी रचनाएं उत्कृष्ट एवं पठनीय ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ।
    मेरी रचना को भी सम्मिलित करने हेतु दिल से आभार प्रिय श्वेता !

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन संकलन … आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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