मैं जंगल भ्रमण के लिए
उत्सुक रहती हूँ
किंतु जालीदार गाड़ियों से
जानवरों को कौतूहल से देखकर,
पक्षियों की विचित्र किलकारी,
दैत्याकार वृक्षों की
बनावट से अचंभित
जंगल की रहस्यमयी गंध
स्मृतियों में
भरकर ले तो आती हूँ
पर सोचती हूँ
जंगल के कोने में
उगी घास की भाँति
दुनिया की भीड़ में
तिनके सा जीना
क्या यही है जन्म का
उद्देश्य ?
जाना कहाँ था, पहुँचे कहाँ हैं
दाता का दर सदा ही खुला है
भटके थे राह अब चेत आया
क्या वह मिलेगा जो था गँवाया
जबरदस्त अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन