छत्तीसगढ़ को नया राज्य घोषित किया गया....
प्रघानमंत्री आदरणीय अटलबिहारी जी को आभार
हमर छत्तीसगढ़ के बारे में
छत्तीसगढ़ अपने 25वें रजत जयंती वर्ष में राज्योत्सव को धूमधाम तरीके से मनाने की तैयारी कर रहा है. इस बार का राज्योत्सव पांच दिन का होगा. हर दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे. मुख्य मंच के अतिरिक्त राज्योत्सव स्थल पर बने शिल्प ग्राम में भी करीब एक हजार छत्तीसगढ़ी कलाकार अपनी अलग-अलग प्रस्तुति देंगे. समारोह में भजन सिंगर हंसराज रघुवंशी, अंकित तिवारी और अंतिम दिन कैलाश खेर अपनी आवाज का जादू बिखरेंगे., राज्योत्सव का उद्घाटन 1 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे. यही वजह है कि प्रधानमंत्री की गरिमा के अनुरूप पूरे कार्यक्रम की तैयारी की जा रही है. शुक्रवार को मुख्यमंत्री विष्णु देव साय स्वयं राज्योत्सव व प्रधानमंत्री से जुड़े अन्य कार्यक्रम स्थल का निरीक्षण किया और अधिकारियों को गंभीरता से कार्य करने की हिदायत दी.
रचनाए देखिए ...
फिर आया गूगल ! सर्वज्ञानी ! एक ऐसा गुरु जो सदा 365x24 आपके साथ ही रहने लगा ! दिन-रात-दोपहर-शाम, जब आप चाहें हर प्रश्न के जवाब के साथ हाजिर ! आपकी किसी डिग्री या लियाकत की जरुरत नहीं ! कोई ना-नुकर नहीं ! कोई अपेक्षा नहीं ! कोई समयावधि नहीं ! प्रश्नों की कोई सीमा नहीं ! आप पूछते-पूछते थक जाएं पर वह जवाब देने में कोई कोताही नहीं करता ! इतिहास, भूगोल, सोशल या मेडिकल साइंस, गणित, इंजीनियरिंग, साहित्य, फिल्म, वेद, पुराण, उपनिषद, महाकाव्य, अंतरिक्ष विज्ञान, दुनिया का कोई विषय उससे अछूता नहीं है ! कोई भी सवाल हो, जवाब तुरंत हाजिर है। तो ऐसे गुरु का नाम कैसे कोई याद नहीं रखेगा !
मैंने तो बड़ी ख़ामोशी से
तुम्हारी ग़ज़लों में धधकती
क्रांति की आग को बस
एक बार चखना चाहा था
पर तुमने तो इन्हें
शांत रहना सिखाया ही नहीं!
थाली देखकर दादा की आंखें चमकने लगी।
पूरी, खीर, गोभी आलू मटर की सब्जी,
बैंगन भाजा रसगुल्ला।
दादी ने कहा ," पहले कमरा बंद करो,
कोई देख न ले। फिर चुपचाप खा लो,
और खबरदार जो थाली में एक निवाला भी छोड़ा।" दादा की नज़र थाली से नहीं हट रही,
याद नहीं आ रहा कब ऐसे भोजन के दर्शन हुए थे।
दादी से बोले, ज़रा मेरे दांत ले आओ, वहीं मेज पर रखे हैं। रात में निकाल कर रखे थे"।
दादी दांत खोजने लगीं। दांत कहीं नहीं मिले।
पूरा कमरा छान लिया। इधर दादा से खाने का इंतजार नहीं किया जा रहा,
उधर दांत नहीं मिल रहे, खाएं तो खाएं कैसे! किसी के आ जाने का डर अलग से।
अपनी-अपनी दुनिया है सबकी
दे के मुस्कान हर कोई खिसका
चलो किसी को अपना बना लें
सोचते ही सारा ख़ुमार है पिचका
अग्नि की ज्वाला सी चंचल
गंगा की धारा सी निर्मल
राम प्राण हो जहाँ रमे हों
अंतस्तल वह तुममें देखा
अनुभव के पन्नों में तोले
शब्दों के वो कितने जोड़े
जो मुझको आशीष हुए हैं
उन मंत्रों में तुमको देखा
छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता
होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता
कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता
फिर हम काम पर जायेंगे
तुम्हे साड़ी खरीदना हैं
लहंगेवाला
दिनभर हाथ-पैर चलायेंगे
तब न जुटा पाएंगे हम कुछ रुपए..
आज बस
सादर वंदंन
फिर आया गूगल ! सर्वज्ञानी ! एक ऐसा गुरु जो सदा 365x24 आपके साथ ही रहने लगा ! दिन-रात-दोपहर-शाम, जब आप चाहें हर प्रश्न के जवाब के साथ हाजिर ! आपकी किसी डिग्री या लियाकत की जरुरत नहीं ! कोई ना-नुकर नहीं ! कोई अपेक्षा नहीं ! कोई समयावधि नहीं ! प्रश्नों की कोई सीमा नहीं ! आप पूछते-पूछते थक जाएं पर वह जवाब देने में कोई कोताही नहीं करता ! इतिहास, भूगोल, सोशल या मेडिकल साइंस, गणित, इंजीनियरिंग, साहित्य, फिल्म, वेद, पुराण, उपनिषद, महाकाव्य, अंतरिक्ष विज्ञान, दुनिया का कोई विषय उससे अछूता नहीं है ! कोई भी सवाल हो, जवाब तुरंत हाजिर है। तो ऐसे गुरु का नाम कैसे कोई याद नहीं रखेगा !
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करना था फेस बुक में शेयर
हटाएंहो गया यहीं
खैर कोई बात नहीं
घी गिरा ते खिचड़ी में
वंदन
जो होता है, अच्छा ही होता है ☺️🙏
हटाएंघी गिरा ते खिचड़ी में स्वाद दुगुना हो गया । सराहनीय रचनाओं से सुसज्जित शानदार अंक ।
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंशानदार अंक !
जवाब देंहटाएं2 अगस्त के बाद से लेखन बंद है क्य़ूँ .....
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