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शुक्रवार, 14 नवंबर 2025

4571...बाल-दिवस की शुभकामनाऍं


शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी का हार्दिक अभिनंदन।
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देश के प्रथम प्रधानमंत्री 
पंडित जवाहरलाल नेहरू का
जन्मदिन है आज।


तमाम राजनैतिक और व्यक्तिगत 
विश्लेषणों से तटस्थ 
मुझे इतना पता है उनके व्यक्तित्व में निहित 
धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता, दूरदर्शी योजनाकार और आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में उनका योगदान, तथा एक प्रखर लेखक और विचारक होना शामिल है। ये ऐसे गुण थे जिन्हें अक्सर उनके आलोचक भी स्वीकार करते हैं।
 चाचा नेहरू के प्रिय
बच्चों को बाल दिवस की शुभकामनाऍं।
आइये अब बात करते हैं बच्चों के
बौद्धिक,नैतिक,भाषाई और रचनात्मक विकास में
महत्वपूर्ण  भूमिका निभाने वाले 
बाल-साहित्य के बारे में।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की क्रांति ने
साहित्य की सीमा कोर्स की पुस्तकों तक
सीमित कर दिया है।
बाल पत्रिकाएँ दम तोड़ रही है, कुछ गिने चुने अखबारों में साप्ताहिक कॉलम बचे है बाल साहित्य के नाम पर।
कार्टून कैरेक्टरों ने पंचतंत्र और अन्य प्रेरक कथाओं को विस्थापित कर दिया है, जादू-टोने, परी कथाएँ सब बीते ज़माने की बात हो गयी है। जबकि ये सच है कि बच्चों को कोर्स की किताबों के अलावा भी भरपूर मानसिक खुराक की आवश्यकता है,क्योंकि बाल साहित्य न सिर्फ बालमन का मनोरंजन करता है बल्कि बच्चों का 
मानसिक तनाव दूर करने में भी सहायक है।
जन्मते बच्चों में फोन के प्रति बढ़ते पागलपन
देखते हुए अभिभावकों को भी अपनी जबावदेही
तय करना अति आवश्यक लगने लगा है।

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बाल दिवस पर पढ़िए 
हिंदी साहित्य के लब्धप्रतिष्ठित 
 साहित्यकारों की
लिखी कुछ निश्छल कविताएं -
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सुमित्रानंदन पंत

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मैं सबसे छोटी होऊॅं

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मैं सबसे छोटी होऊँ,

तेरा अंचल पकड़-पकड़कर


फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,

कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ!


बड़ा बनाकर पहले हमको

तू पीछे छलती है मात!


हाथ पकड़ फिर सदा हमारे

साथ नहीं फिरती दिन-रात!


अपने कर से खिला, धुला मुख,

धूल पोंछ, सज्जित कर गात,


थमा खिलौने, नहीं सुनाती

हमें सुखद परियों की बात!


ऐसी बड़ी न होऊँ मैं

तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,


तेरे अंचल की छाया में

छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,


कहूँ—दिखा दे चंद्रोदय!


रमेश तैलंग

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वाह! मेरे घोड़े

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एक क़दम, दो क़दम, तीन क़दम ताल,

वाह, मेरे घोड़े क्या तेरी चाल!


एक क़दम, दो क़दम, तीन क़दम ताल,

भाग मेरे घोड़े, चल नैनीताल!


एक क़दम, दो क़दम, तीन क़दम ताल,

ले मेरे घोड़े चने की दाल!


एक क़दम, दो क़दम, तीन क़दम ताल,

खाकर दिखा फिर अपना कमाल!



सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 

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हाथी

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सूंड उठा कर हाथी बैठा

पक्का गाना गाने, मच्छर


इक घुस गया कान में,

लगा कान खुजलाने।


फटफट-फटफट तबले

जैसा हाथी कान बजाता,


बड़े मौज से भीतर

बैठा मच्छर गाना गाता।


पूछ रहा है एक-दूसरे से

जंगल—‘ऐ भैया, हमें बता दो,


इन दोनों में अच्छा कौन गवैया?



शुभम् श्री

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मोज़े में रबर

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वन क्लास के गोलू ने सेकेंड

क्लास की मॉनीटर से


सुबह-सुबह अकेले में

शरमाते हुए


प्रस्ताव रखा :

अपनी चोटी का रबर दोगी खोल कर?


‘सर मारेंगे’

‘दे दो ना,


सर लड़की को नहीं मारेंगे

मेरा मोज़ा ससर रहा है!’



श्री प्रसाद 

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ऐसे सूरज आता है

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पूरब का दरवाज़ा खोल

धीरे-धीरे सूरज गोल

लाल रंग बिखरता है

ऐसे सूरज आता है।


गाती हैं चिड़ियाँ सारी

खिलती हैं कलियाँ प्यारी

दिन सीढ़ी पर चढ़ता है।

ऐसे सूरज बढ़ता है।


लगते हैं कामों में सब

सुस्ती कहीं न रहती तब

धरती-गगन दमकता है।

ऐसे तेज़ चमकता है !


गरमी कम हो जाती है

धूप थकी सी आती है

सूरज आगे चलता है

ऐसे सूरज ढलता है।



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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।

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5 टिप्‍पणियां:

  1. बाल दिवस की याद दिलाने का शुक्रिया | सुंदर प्रस्तुति |

    जवाब देंहटाएं
  2. याद तो मुझे भी नहीं था
    आभार
    समयानुकूल चयन
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरा मोज़ा सरर रहा है, कितनी प्यारी सी बाल कविता, बाल दिवस की शुभकामनाएँ, सुंदर प्रस्तुति!!

    जवाब देंहटाएं

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