शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कविता रावत जी की
रचना से।
सादर अभिवादन।
आइए पढ़ते हैं कुछ रचनाएँ-
सच लिखती थी जो कलम,
वो डर के साये में थमी है।
जो गूँजती थीं आवाज़ें,
वो खामोशी में डूबी हैं।
अधिकारों की लौ जलानी है,
इंसाफ़ की राह बनानी है।
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अहंकार के इस मेले में
हर चेहरा मुस्कुराता है—
क्योंकि सब हैं
उस एहसास से महरूम,
कि सब विदूषक हैं यहां,
और कोई दृष्टा बचा ही नहीं।
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अभी वक्त है थोड़ा सवंर लेने दो,
अभी से जिन्दगी कहाँ जाएगी।
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सीता चौक के पास ही लड़कियों का बालिका इंटर कॉलेज है जिसके पास ही सार्वजनिक
पिंक शौचालय बना है किन्तु यहाँ दुकान करने वाले दुकानदार, बाहर गाँवो से आने वाले
ग्राहक कोई भी इसका इस्तेमाल नहीं करते हैँ, गाड़ी से उतरकर या दुकान से नीचे आकर सभी ग्राहक और दुकानदार मूत्र विसर्जन
हेतु नेशनल चिल्ड्रन एकेडमी स्कूल या फिर हमारे घर के ही एक तरफ खडे हो जाते हैं
और महिलाएं तो और दो हाथ आगे हैँ वे घर के मुख्य द्वार के आगे खुद भी बैठ जाती हैँ
और अपने बच्चों को भी बैठा देती हैँ.
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आर्यों का इतिहास - गौरवपूर्ण या कलंकित
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
उत्तम चयन
जवाब देंहटाएंसादर
सुप्रभात! पठनीय सामग्री, आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर समायोजन
जवाब देंहटाएंसंग्रहनीय चयन, मेरी समस्या की ब्लॉग पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शीर्षक सहित सम्मिलित करने हेतु आभार
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