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बुधवार, 5 नवंबर 2025

4562..भला हुआ कब ऐब से?

प्रातःवंदन 

 उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है,

वतन के फकीरों का फेरा हुआ है।

जगो तो निराशा निशा खो रही है

सुनहरी सुपूरब दिशा हो रही है

चलो मोह की कालिमा धो रही है,

न अब कौम कोई पड़ी सो रही है।

तुम्हें किसलिए मोह घेरे हुआ है?

उठो सोनेवालो, सबेरा हुआ है।

अज्ञात


देव दीपोत्सव की शुभकामना के साथ,चलिए आज शुरुआत करते हैं ब्लॉग नया सवेरा की खास पेशकश...

बस इतने भर के लिए मिलना...




ना आँखों में पानी,

ना लफ्ज़ों में शिकवा…

बस एक ख़ामोश देख लेना है तुम्हें

जैसे रूह देखती है

अपना छूटा हुआ शरीर…

✨️

देसी विदेशी।

जेब में रूमाल, हाथ में घड़ी, और


पैंट की बैक पॉकेट में पर्स नजर आए,


तो समझ जाओ कि बंदा हिंदुस्तानी है।


ऊंची बिल्डिंग को ऊंट की तरह सर उठाकर देखे,


और उंगली हिलाकर मंजिलें गिनता नजर आए,


तो समझ जाओ कि.... भाई..

✨️

राह कटे संताप से !

फिर झुंझलाकर मैने पूछा


अपनी खाली जेब से


क्या मौज कटेगी जीवन की


झूठ और फरेब से


जेब ने बोला चुप कर चुरूए


भला हुआ कब ऐब से ..

✨️

चलती रही , मुश्किल सफ़र पे , ज़िंदगी मेरी

माँगा न कुछ , फिर क्यों भला तू ने , नज़र फेरी

तू भी तो कर, नज़रे इनायत , ओ खुदा मेरे

करती रहूँ , कब तक यूँ ही मैं , बंदगी तेरी..

✨️

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह ' तृप्‍ति '

7 टिप्‍पणियां:

  1. कार्तिक पूर्णिमा की शुभकामनाएं
    एक शानदार अंक
    वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. देव दीपावली की बधाई और शुभकामनाएँ ! सुंदर प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक धन्यवाद पम्मी जी मेरी रचना को आज की हलचल में स्थान देने के लिए ! दिल से आभार आपका ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  4. शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं

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