आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
ऋतुओं का संधिकाल सृष्टि के अनुशासनबद्ध परिवर्तन चक्र का प्रतिनिधित्व करता है।
भादो के साँवले बादल, लौटती बारिश की रिमझिम झड़ी क्वार यानि आश्विन की पदचाप की धीमी-सी सुगबुगाहट से हरी धरा की माँग में कास के श्वेत पुष्षों का शृंगार
अद्भुत स्वार्गिक अनुभूति देती है।
नरम भोर ओर मीठी साँझ के बीच में धान के कच्चे दानों सा दिन।
शारदीय नवरात्र के उत्सव के पूर्व आपने कभी देखा है नौजवान ढाकियों को अपने तासे में कास के फूल खोंसकर तन्मयता से झूमते हुए?
आज की रचनाएँ
दरअसल रँग होते हैं तो देखने वाले की आँख में
जो जागते हैं प्रेम के एहसास से
जंगली गुलाब की चटख पंखुड़ियों में
प्रणय का प्रतिफलन, बिंदु -
बिंदु जीवन भर का
एक अमूल्य
संकलन,
डूब
कर भी किसी और जगह
एक नई शुरुआत,
बारम्बार जन्म
के पश्चात
भी नहीं
मिलती
तू अधकचरे ज्ञान से, करने लगा अनर्थ ।।
झलके तेरी बात में, बहुत बड़ा पांडित्य ।
पर मर्म समझता नहीं, है आत्मा तो नित्य ।।
इतना ज्यादा सोच मत, मन को थोड़ा रोक।
अर्जुन ! नश्वर देह का, ठीक नहीं है शोक ।।
देख मोना ! मुझे गुस्सा मत दिला ! बंद कर ये खेल खिलौने ! और चुपचाप पढ़ने बैठ ! कल तेरी परीक्षा है, कम से कम आज तो मन लगाकर पढ़ ले" !
"वही तो कर रही हूँ मम्मी ! मन बार -बार इसके बारे में सोच रहा था तो सोचा पहले इसे ही तैयार कर लूँ , फिर मन से पढ़ाई करूँगी" ।
मिलते हैं अगले अंक में।