सादर नमस्कार
आज सखी को आना था
वे प्रस्तुति बना रही थी
पता नही क्ये नहीं आ पाई
वे फोन लगाए थे , में सुन रही थी
सखी की थकी-थकी सी आवाज
सुबह मैं ही लग गई प्रस्तुति की जगह
जो घटना कल घट गई वो लिखा है और शायद जो
आज घटने वाली है वो भी लिखा होना चाहिए
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर नमस्कार
सादर अभिवादन।
आज रामनवमी है।
भारत में राम जी का जन्मोत्सव अगाध श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भारतीय जीवन शैली में राम रचे-बसे हैं। धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में राममय अनुगूँज सामाजिक चेतना में समाई हुई है। राम जी के आदर्श व्यावहारिक जीवन में सहज स्वीकार्य नहीं हैं बल्कि उन्हें आत्मसात करना मानव को सामाजिक मूल्यों के उच्च शिखर पर स्थापित होना है। मर्यादा की सर्वोत्कृष्ट परिभाषा स्थापित करते हुए प्रजा के कष्ट निवारण को सर्वोपरि रखना उनके दर्शन का मूल सिद्धांत है।
आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ-
चैत महीना शुक्ल पक्ष,
जब जन्मे अवध बिहारी।
मध्यान्ह समय तिथि नवमी,
जब जन्मे अवध बिहारी।।
पहुँचते गए फिर भी वहीं
किसी ने रोका नहीं
नही यह पूछा
यहाँ किस लिये आए किससे मिलने।
ऋतुचक्र उतार लेता है
ऊंचे दरख़्तों के
हरित पोशाक,
झुर्रियों के
उभरते
ही,
चेहरे से रूठ जाता है
मधुमास,
हवा में तैरते पंछी खेत में झूमती फसलें,
कि हर घर में नई सौगात ये नव वर्ष लाया है।
किसी के घर गुड़ी पड़वा, कहीं नवरात्रि का गरबा,
मगन हो झूमकर धरती ने मधुमय गीत गाया है॥
"इनका पति वानप्रस्थ और संन्यास में गुम है। दो पुत्र है, बड़ा विदेश बस गया तो छोटा दूर देश में ही छुप गया है।" परिचित ने कहा।
"दुष्यन्त-शकुन्तला सी किस्मत कम लोगों को मिलती है यानी इनकी गृहणी और मातृत्व में असफल होने की कहानी है।" अपरिचित ने कहा।
।।उषा स्वस्ति।।
सादर नमस्कार
सादर अभिवादन
सृष्टि का आधार तूंही माँ जग की तूंहीं सृजनहार
मान सम्मान और समृद्धि दे दे कर सबका कल्यान
तेरे चरण में शीश नवाऊं माँ दे दे पावन चरणों में स्थान ।
तूं सबकी दुखहर्ता माँ तूं ही पालनहार
सजा रहे दरबार तेरा तुम रक्षा की अवतार
आई द्वार तेरे फैलाये झोली कर दे पूरे अरमान
मेरी आस्था,विश्वास को दे दे बल मांगूं ये वरदान
सादर नमन.....
अब पढ़िये आज के लिये मेरी पसंद.....
मैं राम
पर सच तो यही रहा !
रघुकुल रीत निभाते हुए
मैं सिर्फ और सिर्फ सूर्यवंशी राजा हुआ
मनुष्य से भगवान बनाया गया
सीता से दूर
लवकुश के जन्म से अनभिज्ञ
या तो पूजा जाने लगा
या फिर कटघरे में डाला गया ...
मैं सफाई क्या दूं !!! ...
वो आप थे
सर्द से, वो पल भूलकर,
गुनगुनी, उन्हीं बातों में घुलकर,
गुम से, हो चले हम,
जाने किधर!
अब भी, धुन पे जिसकी रमाता धुनी,
वो आप थे!
ज़िद
कभी तुम गिरे,
कभी मुझे चोट लगी,
पर हम चुपचाप देखते रहे,
न किसी ने किसी को पुकारा,
न किसी ने कोई पहल की.
अब जब मंज़िल दूर है,
वक़्त बचा ही नहीं,
तो थोड़ी हलचल हुई है,
वह भी इशारों-इशारों में.
सुख दुःख की दूरी समझी
बात समझ में आई
सुख के सब साथी होते
दुख में कोई साथ नहीं देता
तब साहस का ही सहारा होता |
कठिनाइयों से भागने से लाभ क्या
जब अकेले ही रहना है
जब तक रहा साथ तुम्हारा जीवन में विविध रंग रहे
कभी किसी अभाव का हुआ ना एहसास |
काग़ज़ पे क़लम से लिखा
क्लासरूम में पढ़ने गया
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है
लोगों से मिल के आया
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है
लायब्रेरी में बैठ गया
तो कहने लगे मेहनत है
वही काम फ़ोन पे किया
तो कहने लगे लानत है
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
प्रत्येक कृति कीर्ति योग्य नहीं हो पाती है
कृत्ति उतारने में सब कृती नहीं हो पाते हैं....
“वह भुग्गा, वह बहत्तर घाट का पानी पिए हुए. इसे दोनो उँगलियों पर नचा रही है और वह समझता है वह इस पर जाना देती है. तुम उसे समझ दो, नहीं कोई ऐसी वैसी बात हो गयी तो कहीं के न रहोगे”. इसी तरह “दिल खोल कर, तालिया बजाकर, घी के चिराग जलाना बगलें बजाना, नाम बडे दर्शन थोडे” जैसे मुहावरों की भरमार है
मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता, सरसता, चमत्कार और प्रवाह उत्पत्र होते है। इसका काम है बात इस खूबसूरती से कहना की सुननेवाला उसे समझ भी जाय और उससे प्रभावित भी हो।
व्याकरणिक संरचना के अनुसार ही मुहावरों का निर्माण या सृजन होता है। मुहावरों का अध्ययन, विश्लेषण, वर्गीकरण एवं वाक्यों में प्रयोग करते समय उनकी संरचनाओं का बोध होना आवश्यक है। किसी मुहावरे की व्याकरणिक संरचना में शब्द-भेद (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण, परसर्ग आदि) एक निर्धारित क्रम में व्यवस्थित होते हैं। कभी-कभी वक्ताओं के द्वारा वाक्य में प्रयोग करते समय मुहावरे की संरचना (शब्द-क्रम) को आवश्यकतानुसार परिवर्तित भी कर लिया जाता है,
Gone Doolally/गॉन दूलाली- यह शब्द भारत के देवलाली नामक स्थान से आया है जहाँ पर 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने एक छावनी का निर्माण करवाया था। इस छावनी में एक पागलखाना भी था जहाँ पर दिमागी रूप से अस्थिर लोगों को भेजा जाता था। यहाँ से लौटने के लिए सैनिकों को महीनों तक इंतज़ार करना पड़ता था जिस कारण उनके व्यवहार में कई बदलाव आ जाते थे। इसी कारण उनके ब्रिटेन लौटने पर उनके बदले व्यवहार की सफाई देते हुए बताया जाता था कि वह व्यक्ति ‘दूलाली’ रहकर आया है इसलिए वह ऐसा पेश आ रहा है।
चुटकी भर सिंदूर से, जीवन भर का साथ.
लिये हाथ में हाथ हँस, जिएँ उठाकर माथ..
सौ तन जैसे शत्रु के, सौतन लाई साथ.
रख दूरी दो हाथ की, करती दो-दो हाथ..
टाँग अड़ाकर तोड़ ली, खुद ही अपनी टाँग.
दर्द सहन करते मगर, टाँग न पाये टाँग
चिलचिलाती धूप (scorching sunshine)
कहते हैं कि भरी दुपहरी में जब बहुत तेज़ धूप पड़ रही हो, तभी चील अंडा देती है और अंडा छोड़ते वक़्त चिल्लाती है । इसलिए तेज़ धूप या गरमी को ‘चील-चिल्लाती’ धूप या गरमी कहते होंगे । यह ‘चील-चिल्लाती‘ पद ‘चिलचिलाती’ बन गया है।
सुनकर माँ का हृदय गदगद हो गया , "सही कहा तूने" कहते हुए माँ ने उसके सिर में बड़े प्यार से हाथ फेरा। मुड़ी उँगलियों को सीधा करते हुए विन्नी खुश होकर चहकती सी बोली, "है न मम्मा ! सही कहा न मैने" !
सूखने लगे हैं प्राकृतिक जलस्रोत
सम्पूर्ण भारत में ऐसे अगिनत प्राचीन जलस्रोत हैं जो आज लुप्त होने के कगार पर हैं। यदि आज भी इनकी सार-संभाल की जाए तो पेयजल की समस्या का समाधान हो सकता है। प्रशासन की अनदेखी तो है ही मगर स्थानीय लोगों की लापरवाही ज्यादा है। नदी, तालाब और कुओं में ही हम कचरा डालने लगेंगे तो पीने के पानी की किल्ल्त तो होगी ही। आवश्यकता है जागरूक होकर अपनी इन अनमोल धरोहरों को सहेजने की। वरना सामने कुआ होगा और हम प्यासे ही मर जायेगें।
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कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
चित्र: साभार गूगल
आज शहीद-दिवस है। 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश हुकूमत ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी योद्धाओं भगत सिंह, शिवराम राजगुरु, सुखदेव थापर को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दी थी।
कृतज्ञ राष्ट्र अपने महान शहीदों को यथोचित सम्मान के साथ याद करता है।
कोटि-कोटि नमन।
गुरुवारीय अंक में पाँच ताज़ा-तरीन रचनाओं के लिंक्स के साथ
हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-
जिसने दी शिक्षा अधूरी तुम्हें
उसने यह तो बताया होगा
गाड़ी के दो पहिये होते हैं
दोनों को साथ ही रहना है स्वेछा
से।
वही ख़ुदा
उनमें भी बसता है उतना ही
चंद निवालों के लिए दिन-रात खटते हैं
कभी देखा भी है पसीना बहाते उनको
अपने हाथों से नई इमारतें गढ़ते
जा बसें उनमें ख़्वाब भी नहीं आये जिनको
ईश्क़ में टूटकर बिखर जाना अगर ईश्क़ है
तोड़कर सरहदें जिद्द की एकबार
बता जाओ आकर हो ख़फ़ा क्यूँ बेज़ार
ख़यालों में हुई तेरे बावरी मशहूर हो गई मैं
राह देखते अपलक थककर चूर-चूर हो गई मैं ।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव