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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

भूकंप में नहीं गिरते घर....पृष्ठ तिहत्तर

सादर अभिवादन करती है यशोदा




आज अतीव हर्षित हूँ
पाँच लिंकों का आनन्द के

नए चर्चाकार के रूप में 
आदरणीय संजय भास्कर का
स्वागत करती हूँ



चलिए आज सीधे 
पसंदीदा रचनाओं की ओर....


भूकंप में नहीं गिरते घर 
गिरते हैं मकान
मकान ही नहीं गिरते
गिरती हैं उनकी छतें
छतें भी यूँ ही नहीं गिरती


मैं कौन हूँ. 
मेरे चेहरे से 
जो नाम जुड़ा है 
वो किसका है. 
मेरे गले में पड़ी 
नाम की तख्ती पे 
क्या दर्ज है आखिर।


निकले हैं दीवार से चेहरे 
बुझे बुझे बीमार से चेहरे 

मेरे घर के हर कोने में 
आ बैठे बाजार से चेहरे 


आप तो शराब में आकर अटक गए. 
चलो शायद मंत्रीजी चाहते हैं 
दिल्ली वाले झूम बराबर झूम की तरह रहे. 
यहां शराब को बैन करने की मांग होती रही है, 
लेकिन ऐसा लगता है कि मंत्री जी चाहते हैं 
पी ले पी ले ओ मोरी जनता.


अब वक़्त वो नही है जो रिश्तों को रखे कायम।
ज़िंदगी की बढ़ रही है जो रफ़्तार धीरे धीरे।।

आबाद कर दिया अपने बच्चों को उसने लेकिन।
बर्बादी के आ गए उसकी आसार धीरे धीरे।।


तेरे जिस्म में रुह कितना आजाद है हमसे पूछ
किसी मसले का क्या निजाद है हमसे पूछ

तुझे क्यों लगा कि उसका एहसान है तेरा होना
तेरा होकर जीना उसका मफाद है हमसे पूछ


सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था
मैं पागल था मगर इतना नहीं था

बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे
तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था


मतला-
लौट जो आए तिरे दरबार से
मत समझना हम हुए लाचार से

हुस्ने मतला-
नाव तो हम खे रहे पतवार से
क्या बचा पाएँगे इसको ज्वार से





आज्ञा दें यशोदा को..
फिर मिलेंगे..













5 टिप्‍पणियां:

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