निवेदन।


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मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

4459...चाहता हूँ गूँथना एक मोहक-सा गजरा तुम्हारी वेणी के लिए...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया साधना वैद जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

बेला के फूल

चाहता हूँ गूँथना

एक मोहक सा गजरा

तुम्हारी वेणी के लिए

सुरभित हो जाए जिससे

ये फिजा और महक जाए

हमारा भी जीवन

बेला के इन फूलों की तरह!

*****

फूल रहा अमलतास

पैदल चलने वाले लोग

पसीना पोंछते एक ओर

ठहर कर ढूँढते हैं जब छाँव,

हिला कर हाथ बुलाता है पास

झूमर जैसा अमलतास!

उतर आता है ज़मीं पर

उस पल स्वर्ग से नंदनवन!

*****

पुनर्मिलन की प्रतिश्रुति--

उभरने
दे अंतर्मन से
सुप्त नदी
का
विलुप्त उद्गम

सरकने दे मोह का यवनिका दूरतक

कोहरे में ढके हुए हैं अनगिनत संभ्रम,

*****

प्रतीक्षा का अंतिम अक्षर

समय गवाह था-

न कोई कोर्ट-कचहरी,

न कोई दावा करने वाला।

*****

बेहद प्रासंगिक है 'कबिरा सोई पीर है'

कबिरा सोई पीर हैउपन्यास में इस विषय पर बहुत गहनता से गौर किया गया है। एक प्रेम-कहानी है जिसके इर्द-गिर्द वास्तविक दुनिया कितनी प्रेम-विहीन और निष्ठुर है..ये उकेरा गया है। यकीन मानिए प्रेम की भी राजनीति होती है। प्रेम भी समय और समाज के कलुष से अछूता नहीं रह पाता। चाहे जितना प्रगाढ़ हो..प्रेम पर भी कुरीतियों के कुपाठ का प्रभाव पड़ता है।
*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

4458 ...इक हम तुम्हारे बाद किसी के नहीं हुए

 सादर अभिवादन

रविवार, 13 अप्रैल 2025

4457 ..मोहिनी शक्ति शिमला

 सादर अभिवादन

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

4456 ...तुम कब आओगे अब तो कहो चाहती हूँ जानना

 सादर अभिवादन

शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025

4455...उन्हें नींद नहीं आती, पर हम चैन की नींद सोते हैं...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीय ओंकार जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

शुक्रवारीय प्रस्तुति में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-

 पिता की खांसी

पिता दिन में भी खाँसते हैं,

पर रात में ज़्यादा खाँसते हैं,

उन्हें नींद नहीं आती,

पर हम चैन की नींद सोते हैं।

*****

पापी का सच

*****

सुखनवर द्विमासिक पत्रिका में प्रकाशित आकिब जावेद की ग़ज़लें

सुख़नवर द्विमासिक पत्रिका के जनवरी - फरवरी 2025 के अंक में नामी आदीबों के साथ इस नाचीज़ को जगह देने के लिए संपादक आदरणीय असीम आमगांवी साहब का बहुत बहुत शुक्रिया

*****

 विप्र सुदामा-70

जब रथ पर बैठ गये कान्हा,

दहाड़ मार रोई सिगरी नगरी।

वादा करो आज  कान्ह तुम,

फिर कब अइहौ मोरी नगरी।।

*****

कविता: "एकलव्य"

अगर एकलव्य उस समय उस कुत्ते को न मारा होता।

तो फिर उस अर्जुन ने भी उस कर्ण को छल से न मारा होता।

फिर तो उस एकलव्य की वह - वह होती

अगर धोखे से अँगूठा न माँगा होता।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

 


गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

4454 ..आज महावीर जयंती है

 सादर अभिवादन



बुधवार, 9 अप्रैल 2025

4053..आओ सच बोलें..

 ।।प्रातःवंदन।।



"खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें

न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें।

सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर

यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें।"


क़तील शिफ़ाई


शेर के मौज़ूं को समझते हुए आनंद लिजिए बुधवारिय अंक की...



लघुकथा (धुएं का छल)

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    कमल वर्मा एक आदर्श पति और जिम्मेदार पिता था, कम से कम घर में उसकी यही छवि थी। लेकिन बाहर की दुनिया में वह सिगरेट का ऐसा शौकीन था कि बिना कश लिए उसकी रगों में बेचैनी दौड़ने लगती। घर में उसने खुद पर यह नियम थोप रखा था लघुकथा (धुएं का छल)..

✨️

जपे राम हर पल

दीपक मन की पीर हरे

हर ले असत तिमिर

रोशन वह ईमान करे 

मजबूत करे जमीर

✨️

घाटी में…


बर्फ से ढके मौन खड़े हैं 


देवदार


हवा की सरसराहट से ..

✨️

दिल की गहराइयों में है जमा अगाध जलधार,

रेत को हटा कर, तुम अंजुरी कभी भर न पाए,

अजस्र आँचल बिखरे पड़े हैं धरातल के ऊपर,

आसक्ति के वशीभूत ख़ुश्बू ज़मीं पे झर..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️


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