निवेदन।


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गुरुवार, 21 नवंबर 2024

4314...राजनीति के उलटफेर होते हैं सर्वत्र क्या देश क्या घर!

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया नूपुरम जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

ज़िन्दगी

अब तो चल 
ऐ ठहरी ज़िन्दगी!
किसका रस्ता
तू देखे है निगोड़ी
तू है तन्हा अकेली। 

*****

वोट डालें महानुभाव!

राजनीति के उलटफेर

होते हैं सर्वत्र

क्या देश क्या घर !

****

एक गीत: सर्द-मौसम

पेड़ से

उड़कर जमीं

पर लौट आए हैं,

ओंस में

भींगे परिंदे

कुनमुनाये हैं,

मौसमी

दिनमान

का भी रंग बदला है.

*****

मन_को_चिट्ठी 
Posts from 6 to 20 Nov 2024

"मैं थोड़ी देर बाद कॉल करता हूँ"

"अभी बिजी हूं , मीटिंग में हूं"

"बाजार में हूँ"

"कोई जरूरी काम कर रहा हूं, गाड़ी चला रहा हूं"

"कॉल पर हूँ, एक ज़रूरी मीटिंग चल रही है"

"ऑफिस में मीटिंग है बहुत जरूरी"

या फिर Pre scripted SMS - "I am busy, call you later"
और बाद में करता हूँ- कभी नही आता। 

*****

पुस्तक समीक्षा

यह किताब उस दौरान मेरे साथ थी लेकिन पढ़ नहीं पायी। जब भारत लौटने का समय आया तो मैंने यह किताब निकाली और सोचा कि 16 घंटे की यात्रा के दौरान इसे पढ़ती हूँ। समय और मौका दोनो इतने सटीक थे कि मैं एक सिटींग में ही 200 पन्ने पढ़ गयी। ऐसा लग रहा था कि जो मैं सोच रही थी या जो मैंने वहाँ रहने के दौरान महसूस किया, सूर्यबाला जी (लेखिका) ने वही सब बयां कर दिया । विदेश में रहने के अपने नफा नुकसान है लेकिन लेखिका ने बिल्कुल निरपेक्ष रहते हुए हर चरित्र की मनस्थिती का सही चित्रण किया है । वेणु और वेणु की माँ, जो कि इस किताब के मुख्य किरदार है, उनके आपस में अबोले संवाद इतने गहरे लिखे गये है कि किसी भी दिल को खासतौर से एक माँ के मन को अनायास ही छूकर आ जाते है।

*****

फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


बुधवार, 20 नवंबर 2024

4313..ख़्वाहिश होनी चाहिए..

 ।।प्रातःवंदन।।

इब्न बतूता पहन के जूता 

निकल पड़े तूफ़ान में 

थोड़ी हवा नाक में घुस गई 

घुस गई थोड़ी कान में  


कभी नाक को कभी कान को 

मलते इब्न बतूता 

इसी बीच में निकल पड़ा 

उनके पैरों का जूता 

उड़ते उड़ते जूता उनका 

जा पहुँचा जापान में 

इब्न बतूता खड़े रह गए 

मोची की दुकान में

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 

थोड़ी हवा नाक में घुस गई ,घुस गई थोड़ी कान में,हाल भी आँखो की न पूछो तो ही अच्छा ये हाल है शहर का..एहतियात रखते हुए लिजिए बुधवारिय प्रस्तुतिकरण..

खुशकिस्मत औरतें

ख़ुशक़िस्मत हैं वे औरतें

जो जन्म देकर पाली गईं

अफीम चटा कर या गर्भ में ही

मार नहीं दी गईं,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे

जो पढ़ाई गईं

माँ- बाप की मेहरबानी से,

ख़ुशक़िस्मत हैं वे 

जो ब्याही गईं

खूँटे की गैया सी,

✨️

. पुरुष भी रोते हैं

कौन कहता है कि, मर्द रोते नहीं।

रोते तो हैं मगर आँसू बहाते नहीं।


पुरुषों का हृदय कोई पत्थर का नहीं होता

वहाँ भी धड़कती है एक जान किसी के लिये

एक पुरूष केवल पुरूष ही नहीं होता..

✨️

कोई 

कोई निकट ही नहीं 

बहुत निकट है 

पल-पल देख रहा है

देह की हर शिरा का स्पंदन 

प्राणों का आलोड़न ..

✨️

ख़्वाहिशें

जिंदगी में कुछ पाने की ख़्वाहिश हमेशा होनी चाहिए क्योंकि ख्वाहिशें ही हकीक़त बनती हैं।जब ख़्वाहिशें हकीकत का जामा पहनती हैं तब जो आंतरिक सुख मिलता है, उसका रसास्वादन स्वयं के अलावा कोई नहीं कर सकता। 

✨️

चुनाव


तुमने प्रेम में अभिव्यकित चुनी

और मैंने चुना मौन हो जाना

तुमने मेरे साथ जोर-जोर हँसना चुना

और मैंनें तुमको हँसते देख मुस्कराना..

।।इति शम।।

धन्यवाद 

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

मंगलवार, 19 नवंबर 2024

4312 ...चांद का सौन्दर्य मेरी कत्थई आंखों में सिमट आया है

 सादर अभिवादन

सोमवार, 18 नवंबर 2024

4311...न जाने क्यों अब ये सब चुप हैं...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीय डॉ. जेन्नी शबनम जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 

सोमवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। आइए पढ़ते हैं पाँच चुनिंदा रचनाएँ-

शब्द

कभी वे आसमान में चले जाते हैं,

दिखते हैं, पर पकड़ में नहीं आते,

कभी वे अंदर पैठ जाते हैं,

साफ़-साफ़ दिखाई पड़ते हैं। 

*****

गुलाबी अक्षर

सिर्फ जानते हो तुम
और तुम ही दे सकते हो
कोई रंगीन-सी उगती हुई कविता
इस रंगहीन वक्त में ....
*****
सुकून के एक पल भी मिलने नहीं आते हैं  
संवेदना से भरे हाथ मुझ तक नहीं पहुँचते हैं। 
*****


मेरे चार अटपटे-चटपटे गुरुजन

इटावा के पुरबिया टोला में स्थित मॉडल स्कूल में कक्षा चार-कक्षा पांच में पढ़ते समय मुझ शहरी बालक को टाट पर और पटरी पर बैठ कर ठेठ गंवारू माहौल को पूरे दो साल तक बर्दाश्त करना पड़ा था.
हमको गणित पढ़ाने वाले तिवारी मास्साब कक्षा में हमको जोड़-गुणा-भाग पढ़ाते समय बीड़ी का कश लगाने में ज़रा भी तक़ल्लुफ़ नहीं करते थे.
धूम्रपान के महा-विरोधी परिवार के एक जागरूक सदस्य की हैसियत से मैंने तिवारी मास्साब को टोकते हुए एक दिन कह दिया –
‘मास्साब ! आप क्लास में बीड़ी क्यों पीते हैं? मेरे पिताजी कहते हैं कि क्लास में बीड़ी पीने वाले को तो जेल में डाल देना चाहिए.’  
*****
फिर मिलेंगे।

रवीन्द्र सिंह यादव


रविवार, 17 नवंबर 2024

4310 ... अस्पताल दवाओं की बदबू, आती - जाती नर्सें

 सादर अभिवादन

शनिवार, 16 नवंबर 2024

4309.... जल, वायु, अग्नि, आकाश, और पृथ्वी के अलावा, हम इंतज़ार के भी बने हैं।

 सादर नमस्कार

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

4308 ...जो भी कहना हमें सीधा सीधा कहो.

 सादर नमस्कार


गुरु पूर्णिमा है आज सिखों के प्रथम (आदि ) गुरु नानक देव जी का 555 वाँ जन्म दिन है

नानक  (कार्तिक पूर्णिमा 1469 – 22 सितंबर 1539) सिखों के प्रथम (आदि ) गुरु हैं. इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानक शाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु - सभी के गुण समेटे हुए थे। इनका जन्म स्थान गुरुद्वारा ननकाना साहिब पाकिस्तान में और समाधि स्थल करतारपुर साहिब पाकिस्तान में स्थित है।

अपने दैवीय वचनों से उन्होंने उपदेश दिया कि केवल अद्वितीय परमात्मा की ही पूजा होनी चाहिये। कोई भी धर्म जो अपने मूल्यों की रक्षा नहीं करता वह अपने निम्न स्तर के विकास को दर्शाता है और आने वाले समय में अपना अस्तित्व खो देता है । उनके संदेश का मुख्य तत्व इस प्रकार था – ईश्वर एक है, ईश्वर ही प्रेम है, ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य समान हैं । वे सब एक ही प्रकार जन्म लेते हैं और एक ही प्रकार अंतकाल को भी प्राप्त होते हैं। ईश्वर भक्ति प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उसमें जाति- पंथ ,रंगभेद की कोई भावना नहीं है। 40वें वर्ष में ही उन्हें सतगुरु के रूप में मान्यता मिल गयी। उनके अनुयायी सिख कहलाये। उनके उपदेशों के संकलन को जपजी साहिब कहा जाता है। प्रसिद्ध गुरू ग्रंथ साहिब में भी उनके उपदेश और संदेश हैं। सभी भारतीय उन्हें पूज्य मानते हैं और भक्ति भाव से इनकी पूजा करते हैं।

उनको शत शत नमन


आज की पसंंदीदा रचनाएं


मेरे यक्ष प्रश्न

पिता का अंश हो,प्राण हो,कुल पहचान हो,
घर द्वार की शहनाई हो,धरोहर मेहमान हो,
प्रेम से सिंचित,पोषित,लीलामई मुस्कान हो,
परिवार का सम्मान हो,गर्व हो,अभिमान हो,
मां की दुलारी,पिता की हिम्मत का भान हो,
भ्राता की कलाई का बंध हो,अटूट संबंध हो,
नैनों का इंतजार,प्रेमपूर्ण भाव की गहराई हो,
सब कुछ हो,तो फिर,बेटी कैसे तुम पराई हो?


चुनाव

तुमने प्रेम में अभिव्यकित (अभिव्यक्ति) चुनी
और मैंने चुना मौन हो जाना
तुमने मेरे साथ जोर-जोर हँसना चुना
और मैंनें तुमको हँसते देख मुस्कराना




पास बैठो ज़रा तुम घड़ी ,दो घड़ी,
ज़ल्दी ज़ल्दी ना इतनी मचाया करो.

जो भी कहना हमें सीधा सीधा कहो.
बीच में दूसरों को न लाया करो.


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