शीर्षक पंक्ति: आदरणीया फ़िज़ा जी की रचना से।
सादर
अभिवादन।
आइए
पढ़ते हैं शुक्रवारीय अंक की रचनाएँ-
रंगों का सम्मोहन, भीगे मौसम के आकर्षण,
हां, समाहित हो तुम, यूं मुझमें ही वर्षों....
*****
हर ‘फ़िज़ा’ की पहचान अलग होती है
ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही पहेलियों से भरी है,
हर मोड़ सरल नहीं होता, हर राह सीधी नहीं होती।
पतझड़ भी आता है अपने समय पर,
और कभी-कभी टहनियाँ वक़्त से पहले साथ छोड़ जाती हैं।
*****
दीदी हँसकर आती।
दिन भर झगड़े की छुट्टी कर,
बहुत भली बन जाती।
दोस्त सभी समय पर आकर,
देते शुभ बधाई।
दादी कहती बैठो बेटा,
खाओ खूब मिठाई।
उपन्यास का नाम ‘शिखंडी’ इसलिए रखा गया है क्योंकि ‘महाभारत’ महाकाव्य में शिखंडी नामक एक पात्र है जिसकी ओट
में से अर्जुन ने भीष्म पितामह पर बाण बरसाए थे और पितामह उनका उचित प्रत्युत्तर
इसलिए नहीं दे पाए क्योंकि शिखंडी पूर्व में स्त्री था एवं पितामह ऐसे व्यक्ति पर
प्रहार नहीं कर सकते थे; उपन्यास का केंद्रीय पात्र पारस शिखंडी की ही
भांति है जिसकी ओट में से वास्तविक अपराधी अपनी चालें चलता है। पारस को शिखंडी
बनाकर ही उसने अपने सम्पूर्ण षड्यंत्र का ताना-बाना बुना था।
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
Wow
जवाब देंहटाएंThanks
सुप्रभात ! पठनीय रचनाओं की खबर देती सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंव्वाहहह
जवाब देंहटाएंसुंदर संयोजन
सादर
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलनI मेरे आलेख को स्थान देने हेतु हार्दिक आभारI
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंBahut bahut dhanyavaad meri rachna ko yahan shaamil karne ke liye, abhar!
जवाब देंहटाएं