मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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अलविदा
8 दिसम्बर 1935 - 24 नवम्बर 2025
ज्ञान-अज्ञान,जड़-चेतन के गूढ़ प्रश्न,
ब्रह्मांड में स्पंदित नैसर्गिक आलाप।
निर्माण के संग विनाश का शाप,
जीवन लाती है मृत्यु की पदचाप।
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आज की रचनाऍं-
रात की तन्हाई में, इक चाँद, कुछ तारे भी थे
तेरे उजाले में मगर, उनका नशा सारा गया॥
इश्क़ के कूचे में हमने, नाम जब तेरा लिया
ग़मज़दा अपना फ़साना, लम्हों में सारा गया॥
रहने की, तेरे दिल के कोने में, लगन ऐसी जगी
हम जहाँ भी रहते थे, वाँ का पता सारा गया॥
घर की दीवारें
शफ़क़ की तरह गुलाबी नहीं
कसक की तरह भूरी हो जाती हैं
जब पड़ोसी रिश्तेदार
सवालों को नमक की तरह फेंकते हैं—
"लड़की ठीक है न?"
"कहीं कोई रोग तो नहीं ?"
"कोई पसंद क्यों नहीं करता ?"
"या लिव इन में तो नहीं…?"
इसी मंदिर के निकट एक ऐसी जगह और है जिसका नाम रावण से जुड़ा है।इसे रावण वेट्टा कहते हैं ।ऐसा माना जाता है कि रावण ने अपनी तलवार से इस चट्टान को काटा था। मंदिर के पीछे एक स्थान पर लकड़ी के कई छोटे छोटे पालने लटक रहे थे।माधवानंद जी ने बताया, संतान प्राप्ति के लिए लोग यहाँ मन्नत माँगते हैं।
दिन रात तेरे अक्स को उतार कल्पनाओं में
पूजती रही मन ही मन शाश्वत भावनाओं में
तुम पूजा ना सके साध ज़िन्दगी की एक भी
क्या कमी रही बताओ ना मेरी साधनाओं में
अक्सर 'बालकॉनी' में गौरैयों, कबूतरों या पंडुकों की आवाज़ें सुनकर ख़ुश होने वाला बिट्टू .. अचानक 'बालकॉनी' से कुछ कौवों की काँव- काँव की आवाज़ें अभी अपने कानों में पड़ते ही ख़ुश होते हुए अपनी दादी से कहता है - " दादी माँ ! देखो आज कौवा भी आया है। "
दादी माँ - " हाँ रे ! .. लगता है आज अपने घर कोई ना कोई मेहमान आने वाला है .. तभी तो ये लोग इतना हल्ला कर रहे हैं। "
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आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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जी ! .. सुप्रभातं सह मन से नमन संग आभार आपका .. उपरोक्त बतकही को "पाँच लिंकों का आनंद" के मंच पर प्रसारित करने के लिए .. साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से ही सही, परन्तु निजी तौर पर "बित्ता भर का छोकरा" और "बित्ते भर का छोकरा" में अंतर बतला कर व्याकरणीय त्रुटि को सुधरवाने के लिए भी .. बस यूँ ही ...
जवाब देंहटाएंआपकी आज की भूमिका के बहाने धर्मेन्द्र जी की अंतिम यात्रा पर एक तुच्छ- सी टिप्पणी... आज से पचास साल पहले रील लाइफ (शोले) में जय की मौत पर वीरू रोया था, पर आज रियल ज़िन्दगी में वीरू की अन्तिम विदाई पर जय रो रहे थे .. साथ ही उस शोले फिल्म वाले वर्ष (1975 = आपातकाल ) की काली सरकार के आपातकाल वाले काले दिन भी याद आ गए .. बस यूँ ही ...
wow
जवाब देंहटाएंसुप्रभात!! विनम्र श्रद्धांजलि!! वाक़ई जीवन हर घड़ी लाता है मृत्यु की पदचाप, हम अनजान बने उसे भुलाए रहते हैं। सुंदर प्रस्तुति, आभार!
जवाब देंहटाएंआज सभी (मेरे सिवाय) रचनाओं को पढ़ पाया और टिप्पणीयों को भी चिपकाने का प्रयास किया, जो तत्क्षण प्रकाशित भी हुआ।
जवाब देंहटाएंसिवा "आईना मारा गया" के, क्योंकि उनके ब्लॉग पर टिप्पणी प्रकाशित होने के लिए उनकी सहमति के पासपोर्ट की आवश्यकता है .. शायद ...
बेह्तरीन अंक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
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