“तुम कितने सुंदर और चटकीले हो प्यारे बुराँश
तुम्हें देखकर रुक गई है मेरी श्वाँस
आह! तुम्हारी आभा का मनमोहक तत्व
भूल गई हूँ अपना और इस धरा का अस्तित्व
सच! तुम इस पृथ्वी पर ही हो या स्वर्ग में
क्या कहूँ तुम्हारे वैभव के उत्सर्ग में
मेरे शब्द फीके हैं और संदर्भ बेमानी
निःशब्द हूँ चुप हो गई है मेरी वाणी”
आज उसके दुःख में कोई नहीं ठहरा है
जो लोगों में भरता रहता था सतत उत्साह
आज उसका ही दिल दुःख से भरा कमरा है





सुंदर चयन
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
शुक्रिया श्वेता जी
जवाब देंहटाएंआभार आपका
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