सादर अभिवादन
सहिष्णुता ही
मां का अंतर्निहित गुण है।
कहावत है, रहने वाला महान नहीं होता
महान होता है सहने वाला।
अतः मां की सहनशीलता ने ही
उसे महीयसी बनाया है
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दिया जलता रहा जलता रहा
था ह्रदय में विश्वास
वह रोशन करेगा संसार
थी उम्मीद और आस भी
किया संकल्प उसने
दी अपनी ज्योति
असंख्य दियों को उसने
फैलाई रोशनी चहुँ ओर उसने
मिटाया अंधकार हुआ चमत्कार
इस छोटी-सी दुनिया में
बड़े जिगर वाले ख़्वाब देखें
हौसले बुलंद करें बड़ों के..
पहाड़,नदी, वृक्ष की छाँव बनें..
जिस धुरी पर टिकी है पृथ्वी
उसी पेंसिल के भरोसे है दुनिया ।
एक ज़माना था जब चिट्ठियों की आवाजाही या आदान प्रदान हरकारों या फ़िर कबूतरों के ज़रिए होता था।
बदलते समय के साथ इनकी जगह डाकघरों ने डाकियों के ज़रिए ले ली। समय और आगे बढ़ा तो
ईमेल और व्हाट्सएप जैसे दर्जनों साधनों के सुगमता से उपलब्ध हो जाने की वजह से जरूरत
ना समझे जाने पर सड़कों के किनारे बने लाल रंग के तथाकथित लेटर बॉक्स यानी
कि लाल डिब्बे भी सरकार द्वारा लोप कर दिए गए।
इन सब आड़े-तिरछे साधनों-संसाधनों के बीच गुटरगूं करते प्रेमी जोड़ों की रूमानियत भरी चिट्ठियों की
बात तो होने से रह ही गई। जी हाँ... मैं बात कर रहा हूँ उन इत्र की भीनी-भीनी खुशबू में डूबी
गिले-शिकवों और मनुहार-दुलार से भरी मीठी-मीठी चिट्ठियों की जिन्हें
प्रेम पत्र या लव लेटर कहा जाता है।
हर दिशा खुशबू फैलाते
चक्षुओं को सहलाते
उपवन के ये पुष्प ।
भ्रमर का प्रेम यही है
तितलियों का यौवन यही है
मधु मक्षिका करती
जिनका रसपान
तितलियों की प्रीत उन्ही से है
साफ सुंदर लचीले झूठ बेचता हूं।।
सबके काम आए जो वह करामात बेचता हूँ
जी मैं झूठ बेचता हूँ।
सत्ता की कुर्सी हो या नौकरी की अर्जी हो
आइने से साफ,
सफेदपोश झूठ बेचता हूं।।
रोटी की हो गुहार या हो
बीवी की दरकार छोटे
से बड़े या बड़े से बड़े सबके
काम आएं ऐसे झूठ बेचता हूं।।
‘उलूक’ सब के दिमाग हैं
सही हैं
अपनी ही जगह पर हैं
बस तेरे लिखे में ही है
कुछ सीलन सी नजर आती है
बेहतरीन चयन
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आभार यशोदा जी |
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपरिपक्व लिंकों की हलचल। अभिनंदन यशोदा सखी। पेंसिल के लिए आत्मीय आभार। नमस्ते। सभी रचनाओं में पैना अथवा पृथक दृष्टिकोण।
जवाब देंहटाएंशुभ संध्या, एक से बढ़कर एक पठनीय सामग्री
जवाब देंहटाएंआभार आपका शामिल करने के लिए
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