।।प्रातःवंदन।।
सरेआम
सत्य का कत्ल हुआ
मक्कार मकड़ी, तुरन्त,
सिर से पैर तक जाला बुन गई
कड़ुआ धुआँ बंदी हुआ
केस चला
राह ने गवाही न दी
धूप ने कुछ न कहा
धरती आई।
मिट्टी बोली :
शव ने स्वयं कहा :
लकवा मार गया।
न्यायी संशय
भ्रमवश बोला :
कैदी छूट गया।
केदारनाथ अग्रवाल
सामाजिक परिवेश पर जब कोई दार्शनिक हो तो शब्द शायद ऐसे ही बोलते है.. बुधवारिय प्रस्तुतिकरण को बढाते हुए ..
महकते चहकते
और लता की
कोरों पर लहकते
उपवन की शोभा बढ़ाते हैं ये पुष्प
हर दिशा खुशबू फैलाते
च्यक्षुओं को सहलाते हैं ये पुष्प ।..
✨️
मिट जाते हैं सारे द्वन्द्व
झर जाता है हर विरोध
ख़त्म हो जाता है सदा के लिए संघर्ष
जब नत मस्तक होता है मन (तेरे सम्मुख)
खो जाती है हर चाह ..
✨️
प्रदूषण का बढ़ता ज़हर
यमुना का विषैला झाग
सब कुछ स्वीकार किया
हर टोपी-कुरता-झंडा
बहलाना फुसलाना
कुछ गप्प,कुछ सनसनी
✨️
छलकता जब भी प्रेम के एहसास का पैमाना
शब्दों के मोती से कर लेती दिल्लगी मनमाना
कविताएं बन जाती मेरे उक्तियों की संजीवनी
शायरी में उतर आता उर के उद्गार का आईना ।
✨️
“लेखक बेचारा—किताब लिखे या ठेला लगाए?”-- संदीप तोमर
(हिंदी दिवस स्पेशल )
हिंदी दिवस आते ही बधाइयाँ रेवड़ियों की तरह बंटने लगती हैं। सोशल मीडिया पर लेखक पोस्ट करता है—“मेरा नया उपन्यास प्रकाशित हुआ है, कृपया पढ़ें।” देखते ही देखते सौ-दो सौ लाइक्स आ जाते हैं। दिल, गुलाब और तालियों की इमोजियों की बौछार हो जाती है। लेकिन उन सौ-दो सौ में से दस पाठक तो छोड़िए, दो भी असली खरीदार नहीं निकलते। लाइक देने वाले..
✨️
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '...✍️
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात! सरेआम सत्य हार रहा है, झूठ का बोलबाला है, पर फिर भी अलख जगानी है, सुंदर प्रस्तुति, आभार पम्मी जी!
जवाब देंहटाएंसटीक भूमिका और पठनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंआभारी हूॅं दी।
सस्नेह
सादर।
सामयिक
जवाब देंहटाएंशानदार अंक !
जवाब देंहटाएं