आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
रक्त की छींटों से रंजित
लाल-किले तक जाने वाली सड़क
दहशत में डूबे चेहरे,
रोते -बिसूरते चंद अपने,
बहुत उदास और ख़ामोश है
लाल किला...
परिसर में दीवान-ए-आम के पीछे
संगमरमर की इक दीवार पर
उकेरे गये फूल-पौधे और चिड़िया
जो हर सुबह जीवित हो उठते थे
आगंतुकों की स्नेहिल दृष्टि से
आज सोच रहे हैं...
क्या अब वे
चिरप्रतीक्षारत, अस्पृश्य
इतिहास का अभिशप्त पृष्ठ हो जायेंगे?
पहाड़ी धुन में गाते हैं,
देव यक्ष गंधर्व
इन्हीं की कथा सुनाते हैं,
कहीं कुमाऊं और कहीं
हंसता गढवाली है।
बदल देती है कितना कुछ
उड़ा ले जाती है अपने साथ सारे झूठे - विभव
सबकुछ बरबस अंधेड में था
जो गया वो भी अंधेड में जा विलुप्त हुआ ,
पर नहीं मरती वह
चेतना अखण्ड सौभाग्यवती
सन्नाटा अक्सर भयभीत करता है ! पर कभी-कभी वही खामोशी हमें खुद को समझने-परखने का मौका भी देती है ! देखा जाए तो एक तरह से इसका शोर हमारी आत्मा की आवाज ही है, यह तब उभरती है जब भौतिक दुनिया शांत होती है और हम खुद से बात करने लगते हैं ! एक तरह से यह शोर मानव-मन के आंतरिक कोलाहल और द्वंद्व को दर्शाता है। इसका सटीक उदहारण तो शायद ना दिया जा सकता हो, पर इसकी एक आम सतही सी झलक हमारे देश में होने वाले राजनितिक चुनावों के परिणाम घोषित होने वाले दिनों की पहले रातों को मिल जाती है !






सुप्रभात! कल की दर्दनाक घटना के बाद पूरा देश हिल गया है, ईश्वर इन सिरफिरों को सद्बुद्धि दे! जीवन फिर भी चलता रहेगा, अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंचलिए चलें
जवाब देंहटाएंइस शानदार अंक की शुभकामनाएं
आभार
वंदन
बहुत बहुत धन्यवाद, सम्मिलित करने हेतु 🙏✨
जवाब देंहटाएंविलम्ब हेतु क्षमा कीजियेगा. आपका हृदय से आभार
जवाब देंहटाएं