शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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असली प्रश्न यह नहीं कि मृत्यु के बाद
जीवन का अस्तित्व है कि नहीं,
असली प्रश्न तो यह कि
क्या मृत्यु के पहले तुम
जीवित हो?
उपरोक्त कथन
किसी भी महान उपदेशक,विचार या चिंंतक का हो,
किंतु इन पंक्तियों में निहित संदेश
की सकारात्मकता आत्मसात करने योग्य है।
आज की रचनाऍं-
धरती का प्रेम
धैर्य में है
जो बंजर होने के बाद भी
अंकुरित होने की आशा
नहीं छोड़ती !
आग सिर्फ़ जंगल नहीं खाती,
वो भरोसा भी जलाती है —
कि कल भी हवा में हरियाली होगी,
कि पंछी लौटेंगे अपने घर,
कि धरती अब भी ज़िंदा है।
और अजीब बात यह है —
ये आग पेड़ों ने नहीं लगाई,
हमने लगाई थी…
अपनी ज़रूरतों, अपनी जल्दी,
और अपने अहंकार की तीली से।
विडंबना अक्षरः सत्य बदल गयी गजगामिनी हंस चालों को l
वैभव मधुमालिनी कुसुम रसखानी भूल गयी मधुर तानों को ll
अपरिचित सा ठहराव यहां रफ्तार आबोहवा बीच रातों को l
अदृश्य विचलित मन सौदा करता गिन गिन साँस धागों को ll
स्कूटर भाई, अब चलते हैं,
किसी कबाड़ी के यहां रहते है,
तुम भी पुराने, मैं भी पुराना,
बीत चुका है हमारा ज़माना।
क्योंकि ..
ब्याह लाए हो उसे तुम
साथ इक भीड़ की गवाही के,
तो तुम बन गए हो उसके ..
तथाकथित पति परमेश्वर,
या ख़ुदा जैसे ख़ाविंद।
है ना ? ..
हे चराचर के स्वघोषित सर्वोत्तम चर जीव- नर !
आज के लिए इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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सुप्रभात! सार्थक भूमिका और सराहनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक!
जवाब देंहटाएंजी ! .. सुप्रभातम् सह सादर नमन एवं हार्दिक आभार आपका .. हमारी बतकही को इस सम्मानित मंच पर चिपकाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंआज की भूमिका में आपकी उद्धृत पंक्तियां अक्षरशः अटल सत्य हैं। हम अपना वर्तमान जीवन जीते कम हैं और भूत व भविष्य की दलदल में गोते लगा- लगा कर आह्लादित होने का भ्रम ज़्यादा पाले रहते हैं। शेष कसर.. हमारे आडम्बर और अंधपरंपरा मिलकर पूर्ण कर देते हैं और ज़िन्दगी बीत जाती है .. बस यूँ ही ...
असली प्रश्न यह नहीं कि मृत्यु के बाद
जवाब देंहटाएंजीवन का अस्तित्व है कि नहीं,
असली प्रश्न तो यह कि
क्या मृत्यु के पहले तुम
जीवित हो?
शानदार चयन
आभार वंदन
दिन शुरू होते ही झिंझोङ कर जगा दिया..अच्छा किया बहन श्वेता ! नमस्ते ।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक भूमिका प्रिय श्वेता , शानदार अंक ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक. हार्दिक आभार
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