और कुछ लोग हमारे फैसले से डर कर
दुनिया छोड़ देते हैं…!!
यशोदा का अभिवादन स्वीकार करें.....
काफी असमंजस में पड़ जाती हूँ जब
लगभग 50 रचनाओं से पांच रचनाएँ
चुनु तो किसे..और छोड़ूं तो किसको..
ये रहे आज के लिंक्स....
कुछ अपनों को , अपना बनाने में
हम अपनापन खोते रहे
कुछ गैरों से उनको बचाने में
हम अपनापन खोते रहे
शब ए इन्तज़ार ढल गई,
दूर तक बिखरे पड़े हैं
बेतरतीब, टूटे
हुए ख़्वाब।
बहुत से लेखकों को इन्ही वजहों से मन मसोसते हुए
अक्सर देखा जाता है जब वो कहते हैं
कि यार उम्र से मात खा गए वर्ना
हम भी साहित्यकार थे काम के
बहुत यादें हैं
सब के पास
बचपन के
सावन की।
बुरा तो लगा !
मेरे मीठे सपने ,
पराये हुये
नरम नरम फूलों का रस निचोड़ लेती है..
पत्थर के दिल होते है तितलियों के सीने में…
आशा है मेरी पसंद अच्छी लगेगी आपको भी..
आज्ञा दें
यशोदा..
मेरी रचना 'अपनापन' को स्थान देने के लिए धन्यवाद आपका ..!
जवाब देंहटाएंपाँच बहुत हैं । पढ़े तो सही पाठक । आप पचास पढ़ देती हैं ये कम है क्या ?
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