और सोने में सोहागा कि आज ईद-उल-फितर भी है
अद्भुत संगम है दोनों उत्सव का
मरने की बात
कोई भी मरने वाला
किसी भी जिंदा
आदमी को
मगर कभी भी
बताता नहीं है ।
आईना देखा जब आज तो
सिहर उठी सफेद बाल देख
लगता है समय आ गया
यौवन के जाने का
धूम मची है झूम उठी है,
धरती गगन सितारे भी .
धर्म की रथ सज-धज कर निकली,
अपने नन्द दुलारे की .
बारहों मास
देती बेशर्त प्यार
दुलारी घास !
और आज के इस अंक की अंतिम रचना
तुझे पढ़ा हमेशा मैंने अपनी बंद आँखों से
ये दास्तान है नज़र पे रोशनी के वार की
चढ़े जो इस कदर कि फिर कभी उतर नहीं सके
तलाश ज़िन्दगी में है मुझे उसी खुमार की
उपरोक्त पांच रचनाएं मेरी पसंद की है
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सादर
यशोदा
behatreen chayan or prastuti
जवाब देंहटाएं'पाँच लिंकों का आनन्द' की प्रथम प्रस्तुति पर शुभकामनाऐं । आभार प्रथम सूत्र 'उलूक' की बात 'बात मरने की' को स्थान देने के लिये । ब्लाग लिखने वाले ब्लाग पढ़ने वाले भी बने और ब्लाग पढ़ने वाले ब्लाग लिखने शुरु करें आना जाना बना रहे :) इसी आशा और विश्वास के साथ
जवाब देंहटाएंजय ब्लौगिंग ।
सुन्दर संकलन ...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद यशोदाजी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन किया है |बधाई |
जवाब देंहटाएंइस शानदार शुरुआत की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें यशोदा जी ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय नीरज जी,
हटाएंपांच लिंकों का आनंद 1 वर्ष पूरा करने वाला है। हम सभी चर्चाकार चाहते हैं कि नव वर्ष में कदम रखने से पूर्व आप का नाम भी सातवें चर्चाकार के रूप में हो। उमीद है निवेदन स्विकार करेंगे।
सादर कुलदीप ठाकुर।
आमीन..
हटाएंशुभकामनाएं ।
हटाएंप्रथम प्रस्तुति पर साधुवाद
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